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राष्ट्रभाषा हिन्दी और उसकी समस्याएॅ

काव्यो का आनन्द लेना चाहे ता मैथिलीशरण गुप्त और त्रिपाठीजी के काव्य पढिये। ग्राम्य-साहित्य का दफीना भी त्रिपाठीजी ने खाद कर आपके सामने रख दिया है। उसमे से जितने रत्न चाहे शाक से निकाल ले जाइये और देखिये उस देहाती गान मे कवित्व की कितनी माधुरी और कितना अनूठापन है । ड्रामे का शोक है, तो लक्ष्मीनारायण मिश्र के सामाजिक और क्रातिकारी नाटक पढ़िये । ऐतिहासिक और भावमय नाटकों की रुचि है, तो 'प्रसाद' जी की लगायी हुई पुष्पवाटियो की सैर कोजिए । उर्दू मे सबसे अच्छा नाटक जो मेरी नजर से गुजरा, वह 'ताज' का रचा हुआ 'अनारकली है । हास्य-रस के पुजारी है, तो अन्नपूर्णानन्द की रचनाएँ पढिये । राष्ट्र-भाषा के सच्चे नमूने देखना चाहते है, तो जी० पी० श्रीवास्तव के हँसानेवाले नाटको की सैर कीजिये । उर्दू मे हास्य-रस के कई ऊँचे दरजे के लेखक है और पडित रतननाथ दर तो इस रङ्ग मे कमाल कर गये है। उमर खैयाम का मजा हिन्दी मे लेना चाहे तो 'बच्चन' कवि की मधुशाला मे जा बैठिये। उसकी महक से ही आपको सरूर आ जायगा। गल्प-साहित्य मे 'प्रसाद', 'कौशिक', जैनेन्द्र, 'भारतीय', 'अज्ञेय', विशेश्वर आदि की रचनात्रो मे आप वास्तविक जीवन की झलक देख सकते है । उर्दू के उपन्यासकारो में शरर, मिजों रुसवा, सज्जाद हुसेन, नजीर अहमद आदि प्रसिद्ध है, और उर्दू मे राष्ट्र-भाषा के मबसे अच्छे लेखक ख्वाजा हसन निजामी है, जिनकी कलम मे दिल को हिला देने की ताकत है । हिन्दी के उपन्यास-क्षेत्र मे अभी अच्छी चीजे कम आयी है, मगर लक्षण कह रहे है कि नयी पौध इस क्षेत्र मे नये उत्साह, नये दृष्टिकोण, नये सन्देश के साथ भा रही है। एक युग की इस तरक्की पर हमे लज्जित होने का कारण नही है।

मित्रो, मै आपका बहुत-सा समय ले चुका; लेकिन एक झगडे की बात बाकी है, जिसे उठाते हुए मुझे डर लग रहा है। इतनी देर तक उसे टालता रहा पर अब उसका भी कुछ समाधान करना लाजिम है।