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उर्दू, हिन्दी और हिन्दुस्तानी

भाषा अर्थात् हिन्दुस्तानी की रीडरे पढाई जाती है। केवल उनकी लिपि अलग हाती है। उनकी भाषा मे कोई अन्तर ही नही हाता । इसमे शिक्षा-विभाग का उद्देश्य यह होगा कि इस प्रकार विद्यार्थियो मे बचपन मे ही हिन्दुस्तानी की नींव पड जायगी और वे उर्दू तथा हिन्दी के विशेष प्रचलित शब्दो से भली-भाति परिचित हो जायेगे और उन्हीं का प्रयोग करने लगेगे । इसमे दूसरा लाभ यह भी है कि एक ही शिक्षक शिक्षा दे सकता है । इस समय भी यही व्यवस्था प्रचलित है । लेकिन हिन्दी और उद के पक्षपातियो की ओर से इसकी शिकायते शुरू हो गयी है कि इस मिश्रित भाषा की शिक्षा से विद्यार्थियो को कुछ भी साहित्यिक ज्ञान नही होने पाता और वे अपर प्राइमरी के बाद भी साधारण पुस्तके तक नहीं समझते। इसी शिकायत को दूर करने के लिए इन रीडरो के अतिरिक्त अपर प्राइमरी दरजों के लिए एक साहित्यिक रीडर भी नियत हुई है। हमारे मासिक-पत्र, समाचार-पत्र अोर पुस्तके आदि विशुद्ध हिन्दी मे प्रकाशित होती है । इसलिए जब तक उर्दू पढ़नेवाले लड़को के पास पारसी और अरबी शब्दो का और हिन्दी पढ़नेवाले लड़को के पास सस्कृत शब्दों का यथेष्ट भण्डार न हो, तब तक वे उर्दू या हिन्दी की कोई पुस्तक नहीं समझ सकते । इस प्रकार बाल्यावस्था से ही हमारे यहा उर्दू और हिन्दी का विभेद आरम्भ हो जाता है। क्या इस विभेद को मिटाने का कोई उपाय नहीं है ?

जा लोग इस विभेद के पक्षपाती हैं, उनके पास अपने-अपने दावे की दलीले और तर्क भी मौजूद है । उदाहरण के लिए विशुद्ध हिन्दी के पक्षपाती कहते हैं कि संस्कृत की ओर मुकने से हिन्दी भाषा हिन्दुस्तान की दूसरी भाषाओ के पास पहुँच जाती है, अपने विचार प्रकट करने के लिए उसे बने-बनाये शब्द मिल जाते हैं, लिखावट मे साहित्यिक रूप आ जाता है, आदि आदि । इसी तरह उर्दू का झण्डा लेकर चलने- बाले कहते हैं कि फारसी और अरबी की ओर झुकने से एशिया की दूसरी भाषाएँ, जैसे फारसी और अरबी, उर्दू के पास आ जाती हैं।