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साहित्य का उद्देश्य

यह कहा जा सकता है कि मिश्रित हिन्दुस्तानी उतनी सरस और कोमल न हागी । परन्तु सरसता और कोमलता का मान दण्ड सदा बदलता रहता है । कई साल पहले अचकन पर अंग्रेजी टोपी बेजोड और हास्यास्पद मालूम होती थ। । लेकिन अब वह साधारणतः सभी जगह दिखायी देती है । स्त्रियो के लिए लम्बे-लम्बे सिर के बाल सौन्दर्य का एक विशेष स्तम्भ है, परन्तु आजकल तराशे हुए बाल प्रायः पसन्द किये जाते है। फिर किसी भाषा का मुख्य गुण उसकी सरसता नहीं है, बल्कि मुख्य गुण तो अभिप्राय प्रकट करने की शक्ति है। यदि हम सरसता और कोमलता की कुरबानी करके भी अपनी राष्ट्रीय भाषा का क्षेत्र विस्तृत कर सके तो हमे इसमे सकोच नही होना चाहिए । जब कि हमारे राज- नीतिक ससार मे एक फेडरेशन या सघ की नींव डाली जा रही है. तब क्यों न हम साहित्यिक ससार मे भी एक फेडरेशन या संघ की स्थापना करे, जिसमे हरएक प्रान्तीय भाषा के प्रतिनिधि साल मे एक बार एक सप्ताह के लिए किसी केन्द्र मे एकत्र होकर राष्ट्रीय भाषा के प्रश्न पर विचार-विनिमय करे और अनुभव के प्रकाश में सामने आनेवाली समस्याओं की मीमासा करे ? जब हमारे जीवन की प्रत्येक बात और प्रत्येक अग मे परिवर्तन हो रहे हैं और प्रायः हमारी इच्छा के विरुद्ध भी परिवर्तन हो रहे हैं, तो फिर भाषा के विषय मे हम क्यो सौ वर्ष पहले के विचारो और दृष्टिकोणो पर अडे रहे १ अब वह अवसर आ गया है कि अखिल भारतीय हिन्दुस्तानी भाषा और साहित्य की एक सभा या संस्था स्थापित की जाय जिसका काम ऐसी हिन्दुस्तानी भाषा की सृष्टि करना हो जो प्रत्येक प्रान्त में प्रचलित हो सके । यहाँ यह बताने की आवश्य- कता नहीं कि इस सभा या संस्था के कर्त्तव्य और उद्देश्य क्या होगे । इसी सभा या संस्था का यह काम होगा कि वह अपना कार्य-क्रम तैयार करे। हमारा तो यही निवेदन है कि अब इस काम मे ज्यादा देर करने की गुञ्जाइश नहीं है ।

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