पृष्ठ:साहित्य का उद्देश्य.djvu/२४२

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हंस के जन्म पर

 

'हंस' के लिए यह परम सौभाग्य की बात है, कि उसका जन्म ऐसे शुभ अवसर पर हुआ है, जब भारत में एक नए युग का आगमन हो रहा है, जब भारत पराधीनता की बेड़ियों से निकलने के लिए तड़पने लगा है। इस तिथि की यादगार एक दिन देश में कोई विशाल रूप धारण करेगी। बहुत छोटी-छोटी, तुच्छ विजयों पर बड़ी-बड़ी शानदार यादगारें बन चली हैं। इस महान् विजय की यादगार हम क्या और कैसे बनावेंगे, यह तो भविष्य की बात है पर यह विजय एक ऐसी विजय है, जिसकी नज़ीर संसार में नहीं मिल सकती और उसकी यादगार भी वैसी ही शानदार होगी। हम भी उस नये देवता की पूजा करने के लिये, उस विजय की यादगार क़ायम करने के लिये, अपना मिट्टी का दीपक लेकर खडे़ होते हैं। और हमारी बिसात ही क्या है। शायद आप पूछें, संग्राम शुरू होते ही विजय का स्वप्न देखने लगे! उसकी यादगार बनाने की भी सूझ गई! मगर स्वाधीनता केवल मन की एक वृत्ति है। इस वृत्ति का जागना ही स्वाधीन हो जाना है। अब तक इस विचार ने जन्म ही न लिया था। हमारी चेतना इतनी मंद, शिथिल और निर्जीव हो गई थी कि उसमें ऐसी महान् कल्पना का आविर्भाव ही न हो सकता था; पर भारत के कर्णधार महात्मा गांधी ने इस विचार की सृष्टि कर दी। अब वह बढ़ेगा, फूले-फलेगा। अब से पहले हमने अपने उद्धार के जो उपाय सोचे, वह व्यर्थ सिद्ध हुए, हालाँकि उनके आरम्भ में भी सत्ताधारियों की ओर से ऐसा ही विरोध हुआ था। इसी भाँति इस संग्राम

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