पृष्ठ:साहित्य का उद्देश्य.djvu/२४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२४६
साहित्य का उद्देश्य


युवकों का कर्तव्य

अब युवकों का क्या कर्तव्य है ? युवक नई दशाओं का प्रवर्तक हुआ करता है । संसार का इतिहास युवकों के साहस और शौर्य का इतिहास है। जिसके हृदय मे जपानी का जोश है, यौवन की उमंग है, जो अभी दुनिया के धक्के खा-खाकर हतोत्साह नहीं हुआ, जो अभी बाल-बच्चों की फिक्र से आजाद है अगर वही हिम्मत छोड़कर बैठ रहेगा, तो मैदान में आयेगा कौन 'फिर, क्या उसका उदासीन होना इंसाफ की बात है ? आखिर यह संग्राम किस लिए छिड़ा है ? कौन इससे ज्यादा फायदा उठावेगा ? कौन इस पौधे के फल खावेगा ? बूढे चंद दिनों के मेहमान हैं। जब युवक ही स्वराज्य का सुख भोगेगे, तो क्या यह इंसाफ की बात होगी, कि वह दुबके बैठे रहे । हम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते, कि वह गुलामी मे खुश है और अपनी दशा को सुधारने की लगन उन्हें नहीं है । यौवन कहीं भी इतना बेजान नहीं हुआ करता । तुम्हारी दशा देखकर ही नेताओं को स्वराज्य की फिक्र हुई है। वह देख रहे हैं कि तुम जी तोड़कर डिग्रियाँ लेते हो पर तुम्हें कोई पूछता नही, जहाँ तुम्हे होना चाहिए, वहाँ विदेशी लोग डटे हुए हैं। स्वराज्य वास्तव मे तुम्हारे लिए है, और तुम्हे उसके आन्दोलन मे प्रमुख भाग लेना चाहिए । गवर्नर और चांसेलर तुम्हे तरह-तरह के स्वार्थमय उपदेश देकर, तुम्हें अपने कर्तव्य से हटाने की कोशिश करेंगे, पर हमे विश्वास है, तुम अपना नफा-नुकसान समझते हो और अपने जन्म-अधिकार को एक प्याले-भर दूध के लिये न बेचोगे । लेकिन यह न समझो, कि केवल स्वराज्य का झंडा गाड़कर, और 'इन्कलाब' की हॉक लगाकर तुम अपना कर्तव्य पूरा कर लेते हो। तुम्हे मिशनरी जोश और धैर्य के साथ इस काम में जुट जाना चाहिए । संसार के युवकों ने जो कुछ किया है, वह तुम भी कर सकते हो । क्या तुम स्वराज्य का संदेश गॉव में नहीं पहुंचा सकते ? क्या तुम गाँवों के संगठन में योग नहीं दे सकते ? हम सच कहते है, एल-एल० बी०, या एम० ए० हो जाने के बाद यह अमली तालीम,