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हंस के जन्म पर


है, इसलिए वह स्वराज्य के नाम से कानो पर हाथ रखता है। लेकिन हमारे ही भाइयों में इस प्रश्न पर क्यो मतभेद है, इसका रहस्य आसानी से समझ में नही पाता । वे इतने बेसमझ तो है नही कि इग्लैण्ड की इस चाल को न समझते हों । अनुमान यही होता है कि इस चाल को समझकर भी वे डोमिनियन के पक्ष में हैं, तो इसका कुछ और आशय है। डोमिनियन पक्ष को गौर से देखिए, तो उसमे हमारे राजे-महाराजे, हमारे जमींदार, हमारे धनी-मानी भाई ही ज्यादा नजर आते हैं । क्या इसका यह कारण है कि वे समझते हैं कि स्वराज्य की दशा में उन्हे बहत कुछ दबकर रहना पडेगा ? स्वराज्य में मजदूरों और किसानों की आवाज इतनी निर्बल न रहेगी ? क्या यह लोग उस आवाज के भय से थरथरा रहे है ? हमे तो ऐसा ही जान पडता है । वह अपने दिल में समझ रहे है कि उनके हितों की रक्षा अंग्रेजी-शासन ही से हो सकती है । स्वराज्य कभी उन्हे गरीबों को कुचलने और उनका रक्त चूसने न देगा । डोमि- नियम का अर्थ उनके लिये यही है कि दो-चार गवर्नरियाँ दो-चार बड़े- बड़े पद, उन्हे और मिल जायेंगे । इनका डोमिनियन स्टेटस इसके सिवा और कुछ नहीं है । ताल्लुकेदार और राजे इसी तरह गरीबों को चूसते चले जायेंगे । स्वराज्य गरीबों की आवाज है, डोमिनियन गरीबों की कमाई पर मोटे होनेवालो की । सम्भव है, अभी अमीरों की आवाज कुछ दिन और गरीबों को दबाये रक्खे । गरीबों के सब्र का प्याला अब भर गया है । इग्लैण्ड को अगर अपना रोजगार प्यारा है, अगर अपने मज- दूरों की प्राण-रक्षा करनी है; तो उसे गरीबों की आवाज को ठुकराना नहीं चाहिए, वरना भारत के राजों और शिक्षित-समाज के ऊँचे ओहदेदारो के सँभाले उसका रोजगार न सँभलेगा । जब एक बार गरीब समझ जायेंगे कि इंग्लैण्ड उनका दुशमन है, तो फिर इंग्लैण्ड की खैरियत नहीं । इंग्लैण्ड अपनी संगठित शक्ति से उनका संगठित होना रोक सकता है लेकिन बहुत दिनों तक नहीं।