होती है । उनकी आत्मा की स्वतन्त्रता, शौक की वेदी पर चढा दी जाती है । दुनिया के जितने बड़े-से-बड़े महापुरुष हो गये हैं, और है, वे जीवन की सरलता का उपदेश देते आये है और दे रहे है, मगर हमारे छात्र है, कि हैट और कालर की फिक्र में अपना भविष्य बिगाड रहे हैं।
हिज एक्सेलेन्सी वाइसराय से लेकर सूबो के हिज एक्सेलेन्सियो तक सभी कानून और शांति की रक्षा की धमकियाँ दे रहे है, जिसका अर्थ यह है, कि इस वक्त कानून और शांति की रक्षा के लिये, जो कुछ किया जा रहा है, उससे ज्यादा और भीषण रीति से किया जायगा । और, उधर महात्मा गांधी है कि किसी दशा में भी शांति को हाथ से नहीं छोड़ना चाहते, यहाँ तक कि अवज्ञा का सारा भार उन्होंने अपने सिर ले लिया है।
जहाँ तक शांति-रक्षा का संबंध है, ऐसा कौन आदमी होगा, जो सरकार से इस विषय में सहयोग न करे और मुल्क मे बदअमली हो जाने दे। मगर मुशकिल यह है, कि सरकार ने जिस चीज का नाम शांति रख छोड़ा है, वह हमारे लिये न शांति है, न कानून । जो कानून राष्ट्र बनाता है, उसका पालन वह स्वयं शांति-पूर्वक करता है, लेकिन जो कानून दूसरे लोग उसके लिए बना देते हैं, उसकी पाबंदी वह करती तो है पर संगीनों और मशीनगनों के जोर से, और ऐसी शांति को कौन शांति कहेगा, जिसका आधार तलवारों की झंकार और तोपों की गरज है ! जहाँ तक हमे याद है, सरकार ने और चाहे जितनी गलतियों की हो, शाति की रक्षा मे उसने कभी गलती नहीं की । यह दूसरी बात है, कि हिन्दू मुसलमान आपस मे लड़-लड़कर एक दूसरे के प्राण ले, एक- दूसरे की जायदाद लूटें, घर में आग लगावे, औरतों की आबरू बिगाड़े ! न जाने सरकार की शांति-रक्षिणी शक्ति ऐसे नाजुक मौकों पर क्यों नहीं काम करती !