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हंस के जन्म पर


जेल-सुधार

जिस तरह किसी व्यक्ति के चरित्र का अन्दाजा उसके मित्रों को देखकर किया जा सकता है, उसी तरह किसी राज्य की सुव्यवस्था का अन्दाजा, उसके जेलो की दशा से हो सकता है । रूस के जेल भारत के जेलो को देखते स्वर्ग है । यहाँ तक कि ईरान जैसे देश के जेल भी बहत कुछ सुधर चुके है। हमारे जेलों की दशा जितनी खराब है,शायद संसार मे, इस बात मे कोई उसका सानी न मिलेगा । जतीन्द्रनाथ दास के उत्सर्ग का कुछ फल उस सुधार के रूप में निकला है, जो अभी किये गये है; मगर कैदियों का कई दरजों में विभाजित किया जाना और हरेक कक्षा के साथ अलग-अलग व्यवहार करना, उन बुराइयों की दवा नही है । जेल ऐसे होने चाहिए, कि कैदी उसमे से मन और विचार मे कुछ सुधरकर निकले, यह नहीं कि उसके पतन की क्रिया वहाँ जाकर और भी पूरी हो जाय । इस सुधार से यह फल न होगा, हॉ जो धनी हैं, उन्हे वहाँ कुछ आराम हो जायगा । गरीब की सब जगह मौत है, जेल में भी । मालूम नहीं ईश्वर के घर भी यही भेद-भाव है, या इससे कुछ अच्छी दशा है।

जापान के लोग लम्बे हो रहे हैं

हिन्दुस्तान के लोग दिन-दिन दुर्बल होते जाते हैं। लेकिन जापान के एक पत्र ने लिखा है-जापानियों का डील धीरे-धीरे ऊँचा हो रहा है। बलिष्ठ तो वे पहले भी होते थे; लेकिन अब वे ऊँचे भी हो रहे हैं । इसका कारण है, रहन-सहन मे सुधार । अब वे पहले से अच्छा और पुष्टिकारक भोजन पाते है, ज्यादा साफ और हवादार घरों में रहते हैं, आर्थिक चिन्ताओं का भार भी कम हो गया है । जहाँ अस्सी फी सैकडे आदमी आधे पेट भोजन भी नहीं पाते, वे क्या बढ़ेगे और क्या मोटाएँगे ? शायद सौ वर्ष के बाद हिन्दुस्तानियो की कहानी रह जायगी।