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साहित्य का उद्देश्य

भगवतगीता मे हो तो हो,और तो हमे कहीं नहीं मिलता। भारत के ही इतिहास में नहीं, संसार के इतिहास में भी वह यादगार बनकर रहेगा। पाठक के हृदय पर एक-एक शब्द देव-वाणी-सा प्रभाव डालता है, प्रतिक्षण आत्मा ऊँची होती जाती है, यहाँ तक कि उसे समाप्त कर लेने पर आप अपने को एक नई दुनिया में पाते हैं। महात्मा गाँधी ने स्पष्ट कह दिया है, कि हम पद के लिए, धन के लिए, अधिकार के लिए स्वराज्य नहीं चाहते, हम स्वराज्य चाहते है उन गूँगे, बेजबान आदमियों के लिए, जो दिन-दिन दरिद्र होते जा रहे हैं । अगर आज सभी अंग्रेज अफसरों की जगह हिन्दुस्तानी हो जायें, तब भी हम स्वराज्य से उतने ही दूर रहेगे, जितने इस वक्त है। हमारा उद्देश्य तो तभी पूरा होगा, जब हमारी दरिद्र, क्षुधित, वस्त्रहीन जनता की दशा कुछ सुधरेगी ।

मगर हमारे ही देश में हमारे ही कुछ ऐसे भाई हैं, जिन्हे इस निवेदन में कोई नयी बात, कोई नया सन्देश नहीं नजर आता। उन पर उसके ऊँचे, पवित्र भावो का जरा भी असर नहीं पड़ा । वह अब भी यही रट लगाये जा रहे हैं कि महात्माजी आग से खेल रहे है, समाज की जड़ खोदनेवाली शक्तियो को उभार रहे है । जिन्हे अँग्रेजों के साथ मिलकर प्रजा को लूटते हुए अपना स्वार्थ सिद्ध करने का अवसर प्राप्त है, वे इसके सिवा और कह ही क्या सकते हैं । वे अपना स्वार्थ देखते है, अपनी प्रभुता का सिक्का जमते देखना चाहते हैं। उनके स्वराज्य में गरीबों को मजदूरो को , किसानो को स्थान नहीं है, स्थान है केवल अपने लिए; मगर जिस व्यक्ति के हृदय में गरीबो की दिन-दिन गिरती हुई दशा देख कर ज्वाला-सी उठती रहती है, जो उनकी मूक वेदना देख-देखकर तड़प रहा है, वह किसी ऐसे स्वराज्य की कल्पना से संतुष्ट नहीं हो सकता, जिसमे कुछ ऊँचे दरजे के आदमियो का हित हो और प्रजा की दशा ज्यो-की त्यो बनी रहे । हमारी लड़ाई केवल अँग्रेज सत्ताधारियो से नहीं, हिन्दुस्तानी सत्ताधारियों से भी है । हमे ऐसे लक्षण नज़र आ रहे है, कि यह दोनों सत्ताधारी इस अधार्मिक संग्राम में आपस में मिल जायेंगे और