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हंस के जन्म पर

असर पडता है, वह देश-हित के लिए घातक है। मुसलमान किसी प्रश्न पर राष्ट्र की आँखो से नहीं देखता, वह उसे मुसलिम आँखों से देखता है। वह अगर कोई प्रश्न पूछता है, तो मुसलिम दृष्टि से, किसी बात का विरोध करता है, तो वह मुसलिम दृष्टि से । लाखों मुसलमान बाढ़ और सूखे के कारण तवाह हो रहे हैं। उनकी तरफ किसी मुसलिम मेम्बर की निगाह नहीं जाती। आज तक कोई ऐसा मुसलिम संघटन नहीं हुआ, जो मुसलिम जनता की सांसारिक दशा को सुधारने का प्रयत्न करता। हॉ, उनकी धार्मिक मनोवृत्ति से फायदा उठानेवालों की कमी नहीं है । महात्मा गाँधी खद्दर का प्रचार दिलोजान से कर रहे हैं। इससे मुसलमान जुलाहों का फायदा अगर हिन्दू कोरियों से ज्यादा नहीं, तो कम भी नहीं है । लेकिन जहाँ इस सूने के छोटे-से-छोटे शहर ने महात्माजी को थैलियों भेंट की, अलीगढ़ ने केवल सूखा ऐड्रेस देना ही काफी समझा । यह मुसलिम मनोवृत्ति है । देखा चाहिए, सर तेजबहादुर सप्रू सर्वदल सम्मेलन को सफल बनाने मे कहाँ तक सफल होते है। हमारी श्राशा तो नौजवान मुसलमानो का मुँह ताक रही है । इसलामिया कालेज लाहौर में, जहाँ अधिकाश मुसल- मान छात्र थे, स्वाधीनता का प्रस्ताव मुसलमान नेताओं के विरोध पर भी पास हो गया । इससे पता चलता है, कि हवा का रुख किधर है।

महात्माजी का वाइसराय से निवेदन

महात्माजी ने वाइसराय को जो पत्र लिखा है उसे Ultimatum कहना, उस पत्र के महत्त्व को मिटाना है । वह एक सच्चे, आत्मदर्शी हृदय के उद्गार है । उसमे एक भी ऐसा शब्द नहीं है, जिसमे मालिन्य, क्रोध, द्वेष या कटुता की गंध हो । उस पवित्र आत्मा में मालिन्य या द्वेष का स्थान ही नही है। वह किसी का शत्रु नही, सबका मित्र है । अंग्रेजी शासन का ऐसा सपूर्ण इतिहास इतने थोड़े-से शब्दो में, इतनी सद्- प्रेरणा के साथ महात्माजी के सिवा दूसरा कौन लिख सकता था । उस पत्र में जितनी जागृति, जितनी स्फूर्ति, जितना सत्साहस है, वह शायद