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पृष्ठ:साहित्य का उद्देश्य.djvu/२५४

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प्रगतिशील लेखक संघ का अभिनंदन

उद्देश्य अपने साहित्य और दूसरी कलाओ को पुजारियो पडितो और अप्रगतिशील-वर्गों के आधिपत्य से निकालकर उन्हे जनता के निकटतम ससर्ग मे लाया जाय, उनमे जीवन और वास्तविकता लाई जाय, जिससे हम अपने भविष्य को उज्ज्वल कर सकें । हम भारतीय सभ्यता का परम्पराअो की रक्षा करते हुए, अपने देश की पतनोन्मुखी प्रवृत्तियो की बड़ी निर्दयता से आलोचना करेगे और आलोचनात्मक तथा रचनात्मक कृतियों से उन सभी बातो का सचय करेगे, जिससे हम अपनी मंजिल पर पहुँच सके । हमारी धारणा है कि भारत के नये साहित्य को हमारे वर्तमान जीवन के मौलिक बध्यो का समन्वय करता चाहिये, और वह है हमारी रोटी का, हमारी दरिद्रता का हमारी सामाजिक अवनति का और हमारी राजनैतिक पराधीनता का प्रश्न। तभी हम इन समस्याओं को समझ सकेंगे और तभी हममे क्रियात्मक शक्ति आयेगी। वह सब कुछ जो हमे निष्क्रियता, अकर्मण्यता और अन्धविश्वास की ओर ले जाता है, हेय है, वह सब कुछ जो हममें समीक्षा की मनोवृत्ति लाता है, जो हमे प्रियतम रूढियों को भी बुद्धि की कसौटी पर कसने के के लिए प्रोत्साहित करता है, जो हमें कर्मण्य बनाता है और हममे सगठन की शक्ति लाता है, उसी को हम प्रगतिशील समझते हैं।

इन उद्देश्यों को सामने रखकर इस सभा ने निम्नलिखित प्रस्ताव स्वीकार किये हैं-

(१) भारत के भिन्न भिन्न भाषा-प्रातो मे लेखकों की सस्थाएँ बनाना, उन संस्थानों मे सम्मेलनों, पैम्फलेटो आदि द्वारा सहयोग और समन्वय पैदा करना, प्रान्तीय, केन्द्रीय और लन्दन की संस्थाओं में निकट सम्बन्ध स्थापित करना।

(२) उन साहित्यिक सस्थाओं से मेल-जाल पैदा करना, जो इस सभा के उद्देश्यों के विरुद्ध न हों।