३) प्रगतिशील साहित्य की सृष्टि और अनुवाद करना, जो
कलात्मक दृष्टि से भी निर्दोष हो, जिससे हम साम्कृतिक अवसाद को दूर
कर सके और भारतीय स्वाधीनता और सामाजिक उत्थान की ओर
बढ सकें।
४) हिन्दुस्तानी को राष्ट्र-भाषा और इडो-रोमन लिपि को राष्ट्र- लिपि स्वीकार कराने का उद्योग करना ।
(५) साहित्यकारो के हित की रक्षा करना, उन साहित्यकारों को सहायता करना, जो अपनी पुस्तके प्रकाशित कराने के लिए सहायता चाहते हो।
६) विचार और राय को आज़ाद करने के लिए प्रयत्न करना । मैनिफेस्टो पर सर्वश्री डा० मुल्कराज अानन्द, डा० के० एस० भट्ट, डा० जे० सी० घोष, डा० एस० सिन्हा, एम० डी० तासीर और एस० एस० जहीर के शुभ नाम है, और पत्र-व्यवहार का पता है-
Dr M. R. Anand
32, Russell Square
London (W. C. I)
हम इस सस्था का हृदय से स्वागत करते है और आशा करते है कि
वह चिरजीवी हो । हमे वास्तव मे ऐसे ही साहित्य की जरूरत है और हमने
यही आदर्श अपने सामने रक्खा है । हस भी इन्हीं उद्देश्यों के लिए जारी
किया गया है । हाँ, हम अभी इडो-रोमन को राष्ट्र-लिपि स्वीकार करने
के लिये तैयार नहीं है, क्योंकि हम नागरी-लिपि मे सशोधन करके उसे
इतना पूर्ण बना लेना चाहते हैं, जिससे वह भारत की सभी भाषाओं के
लिये समान रूप से उपयोगी हो । हम यह भी कह देना चाहते है, कि
अगर यह सस्था भारत के उस साहित्य को, जो उसके उद्देश्यो के
अनुकूल हो, अंग्रेजी में अनुवाद कराके प्रकाशित कराने का प्रबन्ध कर
सके, तो यह साहित्य और राष्ट्र-दोनों ही की सच्ची सेवा होगी । हम