पृष्ठ:साहित्य का उद्देश्य.djvu/२८६

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शिरोरेखा क्यों हटानी चाहिए?

 

नागरी लिपि समिति ने जितने उत्साह और योग्यता के अपनी कठिन जिम्मेदारियो को पूरा करना शुरू किया है. उससे अाशा होती है कि निकट भविष्य मे ही शायद हम अपना लक्ष्य प्राप्त कर ले। और हर्ष की बात है, कि समिति के प्रस्तावो और आदेशो का उतना विरोध नही हुआ, जितनी कि शका थी । राष्ट्रीय एकीकरण हमे इतना प्रिय हो गया है कि उसके लिए हमसे जो कोई भी माकूल बात कही जाय, उसे मानने के लिए हम तैयार हैं । शिरोरेखा के प्रश्न को भी समिति ने जिस खूबसूरती से हल किया है, उसे प्रायः स्वीकार कर लिया गया है । शिरो- रेखा नागरी अक्षरो का कोई आवश्यक अग नहीं। जिन ब्राह्मी अक्षरो से नागरी का विकास हुआ है, उन्हीं से बंगला, तामिल, गुजराती आदि का भी विकास हुआ है; मगर शिरोरेखा नागरी के सिवा और किसी लिपि मे नहीं। हम बचपन से शिरोरेखा के आदी हो गये हैं और हमारी कलम जबर्दस्ती, अनिवार्य रूप से ऊपर की लकीर खींच देती है, लेकिन अभ्यास से यह कलम काबू में की जा सकती है । इसमे तो कोई सन्देह नहीं कि शिरोरेखा का परित्याग करके हम अपने लेखक की चाल बहुत तेज कर सकेंगे और उसकी मन्द गति की शिकायत बहुत कुछ मिट जायगी और छपाई में तो कहीं ज्यादा सहूलियत हो जायगी। रही यह बात कि बिना शिरोरेखा के अक्षर मुंडे और सिर-कटे से लगेगे, तो यह केवल भावुकता है । जब आखें बेरेखा के अक्षरों की आदी हो जायॅगी, तो वही अक्षर सुन्दर लगेंगे और हमे आश्चर्य होगा कि हमने इतनी सदियों तक क्यो अपनी लिपि के सिर पर इतना बड़ा व्यर्थ का बोझ लादे रखा।