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सहित्य का उदेश्य


कौन हो सकता है-हमारा आशय दिल्ली मे कतलाम करानेवाले नादिरशाह से है। अगर दिल्ली का कतलाम सत्य घटना है, तो नादिरशाह के निर्दय होने मे कोई सन्देह नही रहता । उस समय आपको मालूम है, किस बात से प्रभावित होकर उसने कतलाम को बन्द करने का हुक्म दिया था ? दिल्ली के बादशाह का वजीर एक रसिक मनुष्य था । जब उसने देखा कि नादिरशाह का क्रोध किसी तरह नही शान्त होता और दिल्लीवालो के खून की नदी बहती चली जाती है, यहाँ तक कि खुद नादिरशाह के मुंहलगे अफसर भी उसके सामने आने का साहस नहीं करते, तो वह हथेलियो पर जान रखकर नादिर- शाह के पास पहुंचा और यह शेर पढ़ा-

'कसे न मॉद कि दीगर ब तेगे नाज़ कुशी।

मगर कि जिन्दा कुनी खल्क रा व बाज़ कुशी।'

इसका अर्थ यह है कि तेरे प्रेम की तलवार ने अब किसी को जिन्दा न छोडा। अब तो तेरे लिए इसके सिवा और कोई उपाय नहीं है कि तू मुर्दो को फिर जिला दे और फिर उन्हे मारना शुरू करे । यह फारसी के एक प्रसिद्ध कवि का शृङ्गार-विषयक शेर है; पर इसे सुनकर कातिल के दिल मे मनुष्य जाग उठा । इस शेर ने उसके हृदय के कोमल भाग को स्पर्श कर दिया और कतलाम तुरन्त बन्द करा दिया गया । नेपोलियन के जीवन की यह घटना भी प्रसिद्ध है, जब उसने एक अंग्रेज मल्लाह को झाऊ की नाव पर कैले का समुद्र पार करते देखा । जब फ्रासीसी अपराधी मल्लाह को पकड़कर, नेपोलियन के सामने लाये और उससे पूछा-तू इस भगुर नौका पर क्यो समुद्र पार कर रहा था, तो अपराधी ने कहा-इसलिए कि मेरी वृद्धा माता घर पर अकेली है, मै उसे एक बार देखना चाहता था । नेपोलियन की ऑखो मे ऑसू छलछला आये। मनुष्य का कोमल भाग स्पन्दित हो उठा। उसने उस सैनिक को फ्रासीसी नौका पर इगलैड भेज दिया। मनुष्य स्वभाव से देव तुल्य है। जमाने के छल प्रपञ्च और परिस्थितियो के वशीभूत