पृष्ठ:साहित्य का उद्देश्य.djvu/३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५
जीवन में सहित्य का स्थान


कष्टो से विकल हो उठती है और इस तीव्र विकलता मे वह रो उठता है,पर उसके रुदन मे भी व्यापकता होती है। वह स्वदेश का होकर भी सार्वभौमिक रहता है । 'टाम काका की कुटिया' गुलामी की प्रथा से व्यथित हृदय की रचना है; पर आज उस प्रथा के उठ जाने पर भी उसमे वह व्यापकता है कि हम लोग भी उसे पढकर मुग्ध हो जाते है। सच्चा साहित्य कभी पुराना नही होता । वह सदा नया बना रहता है । दर्शन और विज्ञान समय की गति के अनुसार बदले रहते हैं, पर साहित्य तो हृदय की वस्तु है और मानव हृदय मे तबदीलियों नहीं होतीं । हर्ष और विस्मय, क्रोध और द्वेष, श्राशा और भय, आज भी हमारे मन पर उसी तरह अधिकृत हैं, जैसे आदिकवि वाल्मीकि के समय मे थे और कदाचित् अनन्त तक रहेगे । रामायण के समय का समय अब नहीं है। महाभारत का समय भी अतीत हो गया: पर ये ग्रन्थ अभी तक नये है। साहित्य ही सच्चा इतिहास है क्योंकि उसमे अपने देश और काल का जैसा चित्र होता है, वैसा कोरे इतिहास में नहीं हो सकता । घटनाप्रो की तालिका इतिहास नही है और न राजाश्रो की लडाइयाँ ही इतिहास है। इतिहास जीवन के विभिन्न अङ्गों की प्रगति का नाम है, और जीवन पर साहित्य से अधिक प्रकाश और कौन वस्तु डाल सकती है क्योंकि साहित्य अपने देश काल का प्रतिबिम्ब होता है ।

जीवन मे साहित्य की उपयोगिता के विषय मे कभी-कभी सन्देह किया जाता है। कहा जाता है, जो स्वभाव से अच्छे है, वह अच्छे ही रहेगे, चाहे कुछ भी पढ़ें । जो स्वभाव के बुरे हैं, वह बुरे ही रहेंगे, चाहे कुछ भी पढ़े। इस कथन मे सत्य की मात्रा बहुत कम है । इसे सत्य मान लेना मानव-चरित्र को बदल लेना होगा । जो सुन्दर है, उसकी अोर मनुष्य का स्वाभाविक आकर्षण होता है ।हम कितने ही पतित हो जायँ पर असुन्दर की ओर हमारा आकर्षण नहीं हो सकता । हम कर्म चाहे कितने ही बुरे करे पर यह असम्भव है कि करुणा और दया और प्रेम और भक्ति का हमारे दिलो पर असर न हो । नादिरशाह से ज्यादा निर्दयी मनुष्य और