विवाह करने पर राजी हो जाता है। विवाह होता है। कुछ दिनो तक स्त्री-पुरुष सुख-पूर्वक रहते है । इसके बाद पुरुष धनाभाव से किसी दूसरी धनवान् स्त्री की टोह लेने लगता है। उसकी स्त्री को इसकी खबर हो जाती है, और वह एक दिन घर से निकल जाती है। बस, कहानी समाप्त कर दी जाती है । क्योकि realists अर्थात् यथार्थवादियो का कथन है कि ससार मे नेकी-बदी का फल कहीं मिलता नजर नहीं आता; बल्कि बहुधा बुराई का परिणाम अच्छा और भलाई का बुरा होता है । आदर्शवादी कहता है, यथार्थ का यथार्थ रूप दिखाने से फायदा ही क्या, वह तो अपनी आँखों से देखते ही है। कुछ देर के लिए तो हमे इन कुत्सित व्यवहारो से अलग रहना चाहिए, नहीं तो साहित्य का मुख्य उद्देश्य ही गायब हो जाता है । वह साहित्य को समाज का दर्पण-मात्र नहीं मानता, बल्कि दीपक मानता है, जिसका काम प्रकाश फैलाना है। भारत का प्राचीन साहित्य आदर्शवाद ही का समर्थक है। हमे भी आदर्श ही की मर्यादा का पालन करना चाहिए । हॉ, यथार्थ का उसमे ऐसा सम्मिश्रण होना चाहिए कि सत्य से दूर न जाना पड़े ।
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