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कहानी-कला


है । अतएव हम कहानी ऐसी चाहते हैं कि वह थोडे से थोड़े शब्दो मे कही जाय, उसमे एक वाक्य, एक शब्द भी अनावश्यक न आने पाये, उसका पहला ही वाक्य मन को आकर्षित कर ले और अन्त तक उसे मुग्ध किये रहे, और उसमे कुछ चटपटापन हो, कुछ ताजगी हो, कुछ विकास हो, और इसके साथ ही कुछ तत्व भी हो। तत्वहीन कहानी से चाहे मनोरञ्जन भले ही हो जाय, मानसिक तृप्ति नहीं होती । यह सच है कि हम कहानियो मे उपदेश नही चाहते; लेकिन विचारो को उत्तेजित करने के लिए, मन के सुन्दर भावो को जाग्रत करने के लिए, कुछ-न- कुछ अवश्य चाहते है । वही कहानी सफल होती है, जिसमे इन दोनो मे से-मनोरञ्जन और मानसिक तृप्ति मे से एक अवश्य उपलब्ध हो ।

सबसे उत्तम कहानी वह होती है, जिसका आधार किसी मनोवैज्ञा- निक सत्य पर हो । साधु पिता का अपने कुव्यसनी पुत्र की दशा मे दुःखी होना मनोवैज्ञानिक सत्य है । इस आवेग मे पिता के मनोवेगो को चित्रित करना और तदनुकूल उसके व्यवहारो को प्रदर्शित करना कहानी को अाकर्षक बना सकता है। बुरा आदमी भी बिलकुल बुरा नहीं होता, उसमे कही देवता अवश्य छिपा होता है-यह मनोवैज्ञानिक सत्य है। उस देवता को खोलकर दिखा देना सफल आख्यायिका-लेखक का काम है। विपत्ति पर विपत्ति पडने से मनुष्य कितना दिलेर हो जाता है-यहाँ तक कि वह बड़े से बडे संकट का सामना करने के लिए ताल ठोककर तैयार हो जाता है, उसकी दुर्वासना भाग जाती है, उसके हृदय के किसी गुप्त स्थान मे छिपे हुए जौहर निकल आते है और हमे चकित कर देते है- यह मनोवैज्ञानिक सत्य है । एक ही घटना या दुर्घटना भिन्न-भिन्न प्रकृति के मनुष्यो को भिन्न-भिन्न रूप से प्रभावित करती है-हम कहानी मे इसको सफलता के साथ दिखा सके, तो कहानी अवश्य आकर्षक होगी। किसी समस्या का समावेश कहानी को आकर्षक बनाने का सबसे उत्तम साधन है। जीवन मे ऐसी समस्याएँ नित्य ही उपस्थित होती रहती हैं और उनसे पैदा होनेवाला द्वन्द्व आख्यायिका को चमका