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सहित्य का उदेश्य


देता है। सत्यवादी पिता को मालूम होता है कि उसके पुत्र ने हत्या की है। वह उसे न्याय की वेदी पर बलिदान कर दे, या अपने जीवन- सिद्धान्तो की हत्या कर डाले। कितना भीषण द्वन्द्व है! पश्चात्ताप ऐसे द्वन्द्वों का अखण्ड स्रोत है एक भाई ने अपने दूसरे भाई की सम्पत्ति छल-कपट से अपहरण कर ली है, उसे भिक्षा माँँगते देखकर क्या छली भाई को जरा भी पश्चात्ताप न होगा? अगर ऐसा न हो, तो वह मनुष्य नहीं है।

उपन्यासों की भॉति कहानियों भी कुछ घटना-प्रधान होती है, कुछ चरित्र प्रधान। चरित्र-प्रधान कहानी का पद ऊँचा समझा जाता है, मगर कहानी मे बहुत विस्तृत विश्लेषण की गुञ्जायश नही होती। यहाँ हमारा उद्देश्य सम्पूर्ण मनुष्य को चित्रित करना नहीं, वरन् उसके चरित्र का एक अग दिखाना है। यह परमावश्यक है कि हमारी कहानी से जो परिणाम या तत्व निकले, वह सर्वमान्य हो और उसमे कुछ बारीकी हो। यह एक साधारण नियम है कि हमे उसी बात मे आनन्द आता है जिससे हमारा कुछ सम्बन्ध हो। जूना खेलनेवालो को जो उन्माद और उल्लास हाता है, वह दर्शक को कदापि नहीं हो सकता। जब हमारे चरित्र इतने सजीव और इतने आकर्षक होते है कि पाठक अपने को उनके स्थान पर समझ लेता है, तभी उस कहानी मे आनन्द प्राप्त होता है। अगर लेखक ने अपने पात्रों के प्रति पाठक मे यह सहानुभूति नहीं उत्पन्न कर दी, तो वह अपने उद्देश्य मे असफल है।

पाठको से यह कहने की जरूरत नहीं है कि इन थोड़े ही दिनों में हिन्दी-कहानी-कला ने कितनी प्रौढ़ता प्राप्त कर ली है। पहले हमारे सामने केवल बॅगला कहानियो का नमूना था। अब हम संसार के सभी प्रमुख कहानी-लेखकों की रचनाएँ पढ़ते है, उन पर विचार और बहस करते हैं, उनके गुण-दोष निकालते हैं और उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। अब हिन्दी कहानी-लेखको मे विषय, दृष्टिकोण और शैली का अलग अलग विकास होने लगा है— कहानी जीवन