आया । बस, नाम के अनुरूप ही चरित्र, आकार, वेश-सबकी रचना
हो गयी। 'साइलस मार्नर' भी अगरेजी का एक प्रसिद्ध उपन्यास है।
जार्ज इलियट ने, जो इसकी लेखिका है, लिखा है कि अपने बचपन मे
उन्होंने एक फेरी लगानेवाले जुलाहे को पीठ पर कपडे के थान लादे
हुए कई बार देखा था। वह तसवीर उनके हृदय-पट पर अकित हो गयी
थी और समय पर इस उपन्यास के रूप मे प्रकट हुई । 'स्कारलेट
लेटर' भी हॅथन की बहुत ही सुन्दर, मर्मस्पर्शिनी रचना है । इस पुस्तक
का बीजाकुर उन्हे एक पुराने मुकद्दमे की मिसिल से मिला । भारतवर्ष
मे अभी उपन्यासकारो के जीवन-चरित्र लिखे नही गये, इसलिए भारतीय
उपन्यास-साहित्य से कोई उदाहरण देना कठिन है । 'रङ्गभूमि' का बीजा-
कुर हमे एक अधे भिखारी से मिला जो हमारे गाँव मे रहता था। एक
जरा-सा इशारा, एक जरा-सा बीज, लेखक के मस्तिष्क मे पहुंचकर
इतना विशाल वृक्ष बन जाता है कि लोग उस पर आश्चर्य करने लगते
है। 'एम० ऐड्र ज़ हिम' रडयार्ड किपलिग को एक उत्कृष्ट काव्य-रचना
है। किपलिंग साहब ने अपने एक नोट मे लिखा है कि एक दिन एक
इञ्जीनियर साहब ने रात को अपना जीवन-कथा सुनायी थी। वही उस
काव्य का आधार थी । एक और प्रसिद्ध उपन्यासकार का कथन है कि
उसे अपने उपन्यासो के चरित्र अपने पडासियो मे मिले। वह घण्टो
अपनी खिडकी के सामने बैठे लोगो को अाते-जाते सूक्ष्म दृष्टि से देखा
करते और उनकी बातों को व्यान से सुना करते थे । 'जेन श्रायर' भी
उपन्यास के प्रेमियों ने अवश्य पढ़ी होगी । दो लेखिकात्रो मे इस विषय
पर बहस हो रही थी कि उपन्यास की नायिका रूपवतो होनी चाहिये या
नहीं। 'जेन आयर' की लेखिका ने कहा, 'मै ऐसा उपन्यास लिखूॅगी
जिसकी नायिका रूपवती न होते हुए भी आकर्षक होगी।' इसका फल
था 'जेन आयर' ।
बहुधा लेखको को पुस्तको से अपनी रचनाओ के लिए अकुर मिल
जाते हैं । हाल केन का नाम पाठको ने सुना है। आपकी एक उत्तम