उसके विचार मे उपन्यास-लेखक नहीं बन सकता । इस परीक्षा-विभाग
मे नवीनता तो अवश्य है पर भ्रामकता की मात्रा भी कम नही है।
लेखको के लिए एक नोटबुक का रहना आवश्यक है। यद्यपि इन पक्तियो के लेखक ने कभी नोटबुक नहीं रखी, पर इसकी जरूरत को वह स्वीकार करता है । काई नयी चीज, काई अनोखी सूरत, कोई सुरम्य दृश्य देखकर नाट बुक मे दर्ज कर लेने से बड़ा काम निकलता है। यूरोप मे लेखको के पास उस वक्त तक नोटबुक अवश्य रहती है जब-तक उनका मस्तिष्क इस योग्य नहीं बनता कि हर प्रकार की चीजो को वे अलग अलग खानो मे सगृहीत कर ले । बरसो के अभ्यास के बाद यह योग्यता प्राप्त हा जाती है, इसमे सन्देह नहीं, लेकिन प्रारम्भकाल मे तो नोटबुक का रखना परमावश्यक है । यदि लेखक चाहता है कि उसके दृश्य सजीव हो, उसके वर्णन स्वाभाविक हो, तो उसे अनिवार्यतः इससे काम लेना पडेगा । देखिये, एक उपन्यासकार की नोटबुक का नमूना-
'अगस्त २१, १२ बजे दिन, एक नौका पर एक आदमी, श्याम वर्ण, सुफेद बाल, ऑखे तिरछी, पलके भारी, आठ ऊपर का उठे हुए और माटे, मछे ऐठी हुई।
"सितम्बर १, समुद्र का दृश्य, बादल श्याम और श्वेत, णनी मे
सर्य का प्रतिबिम्ब काला, हरा, चमकीला, लहरे फेनदार, उनका ऊपरी
भाग उजला । लहरो का शोर, लहरो के छींटे से झाग उड़ती हुई ।'
उन्ही महाशय से जब पूछा गया कि आपको कहानियो के प्लाट कहाँ
मिलते है १ तो आपने कहा, 'चारो तरफ । अगर लेखक अपनी आँखे
खुली रखे, तो उसे हवा मे से भी कहानियाँ मिल सकती है ।रेलगाडी मे,
नौकात्रों पर, समाचार-पत्रो मे, मनुष्य के वार्तालाप मे और हजारो जगहो
से सुन्दर कहानियाँ बनायी जा सकती है। कई सालों के अभ्यास के
बाद देख-भाल स्वाभाविक हो जाती है, निगाह आप ही आप अपने
मतलब की बात छॉट लेती है । दो साल हुए, मै एक मित्र के साथ