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पुस्तक-प्रकाशन

कहिए, यदि यह कम्पनी न होती तो यह उतनी अच्छी पुस्तक शायद दुबारा छप ही न सकती। राजे महराजे हैं सही, और कभी-कभी वे किसी-किसी की मदद कर भी देते हैं; पर उनका यह व्यवसाय नहीं। फिर, कुछ ही राजे-महराजे ऐसे हैं जिनको पढ़ने लिखने का शौक है। बाकी के विषय में कुछ न लिखना ही अच्छा है।

बंगाल में पुस्तक प्रकाशन का थोड़ा-बहुत सुभीता है। दक्षिण में भी कई आदमी मराठी पुस्तकें प्रकाशित करने का व्यवसाय करते हैं। वहाँ कई एक प्रेस भी ऐसे हैं जो हमेशा नई-नई पुस्तकें निकाला करते हैं। कितनी ही मासिक पुस्तकें ऐसी हैं जिनमें अच्छे-अच्छे ग्रन्थ, थोड़े थोड़े, निकलते रहते हैं और पूरे हो जाने पर अलग पुस्तकाकार प्रकाशित किये जाते हैं। दक्षिणात्य प्रकाशकों में हम दाभोलकर-उपनामधारी एक सज्जन के प्रकाशन सम्बन्धी काम को सबसे अधिक प्रशंसनीय समझते हैं। उन्होंने कई साल से उत्तमोत्तम अँगरेज़ी-ग्रन्थों का अनुवाद, प्रतिष्ठित विद्वानो से मराठी में कराकर, प्रकाशित करने का क्रम जारी किया है। आजतक उन्होंने कोई ३० ग्रन्थ प्रकाशित किये होंगे। उनमें कुछ ही ग्रन्थ बिलकुल नये हैं। अधिकतर अँगरेजी के अनुवाद हैं। बाबाजी सखाराम एंड कम्पनी ने भी कई उपयोगी ग्रन्थ प्रकाशित किये हैं। उसका प्रकाशन-कार्य अभी तक जारी है। निर्णय-सागर प्रेस के मालिक और जनार्दन महादेव गुर्जर आति भी चुप नहीं हैं। वे भी पुस्तक-प्रकाशन में अधिकाधिक अग्रसर हो रहे हैं। परन्तु निर्णयसागर से विशेष करके संस्कृत ही के ग्रन्थ अधिक निकलते है। हाँ, महाराजा गायकवार का नाम हम भूल ही गये। आपने बरौदे से आज तक न जाने कितने अमूल्य ग्रन्थ मराठी में प्रकाशित कराये होंगे। आपके नाम के मराठी में ग्रन्थों की एक माला की माला ही निकलती है। आपकी इस माला में जितने ग्रन्थ निकले हैं एक से एक अपूर्व हैं। इस समय हम लोगों को ऐसे ही ग्रन्थों की जरूरत