पृष्ठ:साहित्य सीकर.djvu/१०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
९६
साहित्य-सीकर

हैं। महाराजा गायकवार को विद्या का बेतरह व्यसन है। ग्रंथकारों के तो वे कल्पवृक्ष ही हैं। किसी ग्रन्थकार का कोई अच्छा ग्रंथ उनके सामने आया कि ग्रंथकार को पुरस्कार मिला। आपने कितनी ही दफे मराठी मासिक पुस्तकों के सम्पादकों के लेखों पर प्रसन्न होकर हज़ारों रुपये दे डाले हैं। इस समय आपके साहाय्य से महाभारत का एक बहुत ही अच्छा अनुवाद, मराठी में, हो रहा है।

इन प्रान्तों में पुस्तक-प्रकाशन का व्यवसाय करके मुंशी नवल-किशोर ने बड़ा नाम पाया, बहुत लाभ भी उठाया और सर्वसाधारण में विद्या का प्रचार भी बढ़ाया। उन्होंने हिन्दी, उर्दू, फारसी और संस्कृत के ग्रंथ प्रकाशित करके, बहुत सी अच्छी-अच्छी पुस्तकें, थोड़ी कीमत पर, सुलभ कर दी। यदि मुंशीजी इस काम को न करते तो तुलसीदास की रामायण गाँव-गाँव में न देख पड़ती। यह व्यवसाय करके उन्होंने खुद भी लाभ उठाया और हज़ारों पुस्तकें प्रकाशित करके शिक्षा-प्रचार और ज्ञान-वृद्धि भी की। परन्तु मुंशीजी के सद्व्यवसाय का हृदय से अभिनन्दन करते हुये, हम यह भी कहना अपना कर्तव्य समझते हैं कि उन्होंने विशेष करके उन्हीं पुरानी पुस्तकों के प्रकाशन की ओर अधिक ध्यान दिया जिनका थोड़ा-बहुत धर्म्म से सम्बन्ध था। अथवा उन्होंने किस्से-कहानी आदि की ऐसी किताबें प्रकाशित की जिनको सब लोग पसन्द नहीं करते। परन्तु इसके साथ एक बात यह भी है कि उन्नतविचार-पूर्ण पुस्तकें पढ़ने की लालसा पढ़े-लिखे आदमियों में अभी कुछ ही दिन से जागृत हुई है। अतएव यदि मुंशी जी को इस तरह की पुस्तकें मिलतीं और वे उन्हें प्रकाशित भी करते, तो भी उनके पढ़नेवाले बहुत न मिलतें।

श्रीवेङ्कटेश्वर प्रेस के मालिक ने भी प्रकाशन का काम करके साहित्य की बहुत कुछ उन्नति की है। पहले आपके यहाँ विशेष करके संस्कृत