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सम्पादकीय योग्यता

की भी राय है कि सम्पादकीय गुण मनुष्य को जन्म ही से प्राप्त होते हैं; उपार्जन करने से नहीं मिलते।

एक विद्वान् का नाम है एम॰ एच॰ स्पीलमम। आप ललित कलाओं का अच्छा ज्ञान रखते हैं और उनकी समालोचना करने में सिद्धहस्त हैं। आपको सम्पादकीय बातों का भी उत्तम अनुभव है। आप सम्पादक के लिये इन बातों की आवश्यकता समझते हैं—"अच्छा स्वास्थ्य, अच्छा चाल-चलन, शिष्टाचार, सब से मेल-जोल, सब बातों में विश्वसनीयता, किसी बात पर कुछ लिखने की योग्यता और समझ-बूझकर उत्साह-पूर्वक अपना काम करने की शक्ति"।

स्कादस्मैन के भूतपूर्व सम्पादक, सी॰ ए॰ कूपर, की राय है—"सम्पादकीय काम करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति, इतिहास और प्रसिद्ध-प्रसिद्ध काव्य-ग्रन्थों का ज्ञान, प्रकृत विषय में बुद्धि को संलग्न करने की शक्ति, हर एक बात की आलोचना करने की योग्यता, यथार्थ कथन की आदत, तर्कशास्त्रनुमोदित विचार-परम्परा और परिश्रम"।

मैनचेस्टर गार्जियन के सम्पादक, सी॰ पी॰ स्काट कहते हैं कि सिर्फ एक ही बात ऐसी है जिसके बिना कोई आदमी सम्पादकीय काम नहीं कर सकता। यह बात है "दिमाग"। अर्थात् अच्छे ही दिमाग का आदमी सम्पादकीय काम को योग्यता से कर सकता है।

जितने मुँह उतनी बातें! फिर भी कुछ बातें ऐसी हैं जो एक दूसरे की राय से मिलती भी हैं। कुछ हो। इन बड़े-बड़े सम्पादकों की बातें हम लोगों के विचार करने लायक जरूर हैं। इसी से हमने इनके कथन का स्थूल भावार्थ प्रकाशित करना उचित समझा।

[जून, १९०७