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साहित्य-सीकर

फुटकर बातें—सर्वसम्मत से स्वीकार किये विराम-चिह्न, वर्ण-विचार, संक्षेप-चिन्ह, शोधन-विधि आदि। पैराग्राफ और सम्पादकीय लेख लिखना, इतिहास, भूगोल, राज-कर, राज्य-स्थिति, देश-व्यवस्था, गार्हस्थ्य-विधान और अर्थशास्त्र आदि के सिद्धान्तों के अनुसार प्रस्तुत विषयों का विचार करना।

इलियट साहब का मत है कि सम्पादक के लिए इन सब बातों का जानना बहुत जरूरी है। सत्य की खोज में जो लोग रहते हैं उनकी भी अपेक्षा सम्पादकों के लिए अधिक शिक्षा दरकार है। आजकल के सम्पादकों में सबसे बड़ी न्यूनता यह पाई जाती है कि वे सत्य काे जानने में बहुधा हत-सफल होते हैं, उनमें इतनी योग्यता ही नहीं होती कि वे यथार्थ बात जान सकें। इतिहास के तत्व और दूसरे शास्त्रों के भूल सिद्धान्तों का भली भाँति न जानने के कारण सम्पादक लोग कभी-कभी बहुत बड़ी गलतियाँ कर बैठते हैं।

सम्पादकों के लिए एक और भी गुण दरकार होता है। वह है लेखन कौशल। इसका भी होना बहुत आवश्यक है। इसके बिना अखबारों का आदर नहीं हो सकता। यह कौशल स्वाभाविक भी होता है और सीखने से आ सकता है। जिनमें लेखन-कला स्वभाव-सिद्ध नहीं उनको शिक्षण से तादृश लाभ नहीं होता। परन्तु स्वभाव-सिद्ध लेखकों को शिक्षण मिलने से उनकी लेखन-शक्ति और भी तीव्र हो जाती है।

इलियट साहब ने संपादक के लिये जिन-जिन विषयों का ज्ञान आवश्यक बतलाया है उनका विचार करके, हम हिन्दी के समाचार-पत्र और मासिक पुस्तकों के सम्पादकों की, अपनी योग्यता का अनुमान करने में बहुत बड़ी विषमता दृग्गोचर होती है। अमेरिका के समान सभ्य और शिक्षित देश में जब सम्पादकों को उनका व्यवसाय सिखलाने की जरूरत है तब अशिक्षित देशों की क्या कथा? इस दशा में, बेचारा भारतवर्ष किस गिनती में है?

[जनवरी, १९०४