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साहित्य-सीकर

ख्याति पाई है। आपके लेख भारत ही के नहीं, योरप और अमेरिका के भी समाचार पत्रों में निकला करते हैं। लेख लिखना ही आपका व्यवसाय है। उससे आपकी आमदनी भी बहुत काफी होती होगी। जब एक विदेशी मनुष्य विलायत में इस व्यवसाय से जीवकोपार्जन कर सकता है तब वहीं के रहने वाले सुयोग्य लेखकों की आमदनी का तो कहना ही क्या है। विलायत के प्रायः सभी निवासी समाचार पत्र पढ़ने का शौक रखते हैं। वहाँ किसी समाचार-पत्र की एक कापी से दस-बीस आदमियों का काम नहीं निकलता। जूतों में टाँके लगाने वाला मोची भी, फुरसत के वक्त, ताजा देनिक परचा खरीदता और पढ़ता है। इन्हीं कारणों से योरप और अमेरिका के छोटे छोटे देशों और प्रदेशों तक में समाचार-पत्रों की संख्या सैकड़ों हज़ार तक पहुँचती हैं। योरप के एक बहुत ही छोटे से देश, स्वीटजरलेंड ही में, छः सौ से अधिक समाचार पत्र हैं। इस समय ग्रेट ब्रिटेन, अर्थात् अँगरेजों की विलायत में, तीन हजार से भी अधिक समाचार-पत्र निकल रहे हैं। वहाँ के पत्रों में "टाइम्स" सब से अधिक प्रभावशाली समझा जाता है। उसी का कुछ हाल नीचे दिया जाता है:—

१७८५ ईसवी की पहली जनवरी को इस पत्र का जन्म हुआ। इसके जन्मदाता का नाम था जान वाल्टर। पहले इस पत्र का नाम था—दि लंदन डेली यूनीवरसल रजिस्टर (The London Daily Universal Register) उत्पत्ति के तीन वर्ष बाद इसका नाम "टाइम्स" पड़ा। टाइम्स का संचालक जान वाल्टर एक स्वतन्त्र प्रकृति का मनुष्य था। वह अपने पत्र का संपादन भी बड़ी स्वतंत्रता और निर्भीकता से करता था। वह कुछ तत्कालीन राजपुरुषों के दुराचार न देख सका। अतएव वह उसके कारनामों को अपने पत्र में प्रकाशित करने लगा। फल यह