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विलायत का "टाइम्स" नामक प्रसिद्ध समाचार-पत्र

हुआ कि उसे दो वर्ष के भीतर तीन दफे जुर्माना देना पड़ा। यही नहीं, उसे जेल की हवा खानी पड़ी। १८०३ ईसवी में उसने टाइम्स का प्रबन्ध अपने द्वितीय पुत्र जान वाल्टर के हाथों में सौंप दिया। पुत्र ने अपने पत्र की विशेष उन्नति की। वह अपने पिता से भी अधिक स्वतंत्रता प्रेमी निकला। उसने तत्कालीन मंत्रि-मंडल के कामों की बड़ी ही तीव्र आलोचना की इस कारण टाइम्स में जो गवर्नमेंट के विज्ञापन छपते थे उनका दिया जाना बन्द हो गया। कहा तो यह भी जाता है कि शासक-दल ने टाइम्स के साथ यहाँ तक सलूक किया कि विदेशों से आनेवाले उसके समाचार बन्दरों ही पर रोक लिये जाने लगे। परन्तु द्वितीय जान वाल्टर इन बातों से जरा भी विचलित न हुआ। उसने विदेशी समाचार मँगाने का दूसरा किन्तु पहले से भी अच्छा, प्रबन्ध कर लिया। १८१४ ईसवी में उसने छापने की कलों में भी ऐसा सुधार कर लिया कि एक घण्टे में टाइम्स की ग्यारह सौ कापियाँ निकलने लगी। उस समय तक इतना तेज चलनेवाला और इतना अधिक काम देनेवाला और कोई प्रेस कहीं अन्यत्र न था। टाइम्स के सम्पादकीय विभाग में भी उन्नति की गई। पत्र का आकार, लेखों की संख्या और उनकी उत्तमता बढ़ गई। यह सब हो जाने पर ग्राहक-संख्या में भी अच्छी वृद्धि हुई। १८१५ में काई पाँच हज़ार ग्राहक थे। १८३४ में वे दस हज़ार हो गये, १८४८ में १८,३०००; १८२४ में २३,०००; १८५१ में ४०,००० और १८४४ में ५१,०००।

१८५० ईसवी के बाद टाइम्स की उन्नति बड़े वेग से होने लगी। उस समय उसके मालिकों को यह चिन्ता हुई कि छापने की कलों में और ऐसे सुधार होने चाहिये जिससे और भी कम समय में अधिक कापियाँ छप सकें। इस पर, १८४६ ईसवी में, टाइम्स के कार्यालय के एक कर्मचारी ने एक ऐसी युक्ति निकाली जिससे दोनों तरफ एक ही साथ कागज छपने लगा। १८६९ में एक और भी सुधार हुआ।