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संस्कृत-साहित्य का महत्त्व

गजब की आकर्षण शक्ति है। उसके अध्ययन से मनुष्य बातें—बहुत उपयोगिनी बातें—सीख सकता है।

लोग कहते हैं कि संस्कृत जाननेवाले इतिहास के प्रेमी नहीं। उन्होंने कोई इतिहास नहीं लिखा। पर मैं कहता हूँ कि इतिहास से हम जो कुछ सीख सकते हैं उससे कहीं अधिक संस्कृत-साहित्य से सीख सकते हैं। पूर्ववालों ने तो उससे बहुत कुछ सीखा भी है। अब पश्चिमवाले भी उसका आदर करने लगे हैं। वे उसका अध्ययन करते हैं और उसकी शिक्षणीय बातों से अपने साहित्य को पुष्ट करते हैं। संस्कृत-साहित्य से हमें यह शिक्षा मिलती है कि खून खराबी और मार-पीट के बिना भी मनुष्य किस प्रकार विजय प्राप्त कर सकता है। क्या हम इसे शिक्षा नहीं कह सकते? मैं तो कहता हूँ कि साहित्य इससे बढ़कर और क्या शिक्षा दे सकता है?

योरप के निवासी, और कुछ भारत-निवासी विद्वान् भी समझते हैं कि संस्कृत-साहित्य केवल ब्राह्मणों का धर्म-साहित्य है। ब्राह्मणों के उपयोगी धर्म ग्रन्थों के सिवा उसमें और कुछ नहीं। पर उन लोगों का यह ख्याल गलत है। संस्कृत-साहित्य में केवल ब्राह्मणों के धर्म ग्रन्थ ही नहीं हैं, जैनों और बौद्धों के धर्म-ग्रन्थ भी हैं। समस्त दक्षिणी और पूर्वी एशिया के धार्मिक जीवन पर संस्कृति-साहित्य का बहुत कुछ प्रभाव पड़ा है और पड़ता भी रहेगा।

धार्मिक साहित्य की बात जाने दीजिए। उसका प्रभाव तो प्रत्यक्ष ही दिखलाई दे रहा है। सांसारिक साहित्य को लीजिये। इसी के लिए बेचारे संस्कृत-साहित्य को लोग बदनाम कर रहे हैं। लोग संस्कृत-साहित्य के यथार्थ महत्व को नहीं जानते। सम्पत्ति-शास्त्र, विज्ञान, कला-कौशल, इतिहास, तत्वज्ञान, काव्य और नाटक आदि ही सांसारिक व्यवहारोपयोगी साहित्य के विभाग हो सकते हैं। अतएव अब मैं हर विषय पर विचार करके विपरीत मतवादियों का भ्रम दूर