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पृष्ठ:साहित्य सीकर.djvu/५९

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पुराने अँगरेज अधिकारियों के संस्कृत पढ़ने का फल

अनेकानेक पुस्तकें लिखी हैं उसके लिए भारतवासी उनके बहुत कृतज्ञ हैं। यदि हमारी देववाणी संस्कृत की महिमा से आकृष्ट होकर योरप के विद्या व्यसनी जन उसका परिशीलन न करते तो भारत में राजा और प्रजा के बीच इस समय जैसा भाव है, शायद वैसा कभी न होता। बहुत सम्भव है, पूर्ववत् हम लोग पशुओं ही की तरह लाठी से हाँके जाते। अतएव हम लोग अँगरेज-कर्मचारी योरप के विद्वान् संस्कृत भाषा और महाकवि कालिदास के बहुत ऋणी हैं। विशेष कर कालिदास ही की बदौलत हमारी सभ्यता और विद्वता का हाल योरप वालों को मालूम हुआ। हमारा धर्म है कि हम कालिदास की पूजा करें और प्रेमपूर्वक संस्कृत सीखें।

[फरवरी, १९०९