The Light of Asia, India Poetry, Secret of Death आदि पुस्तकों के लेखक सर एडविन आर्नल्ड का नाम पाठकों में से बहुतों ने सुना होगा। आपकी भी गिनती संस्कृतज्ञों में है। १८९६ में आपने चौरपञ्चाशिका का पद्यात्मक-अनुवाद अंगरेज़ी में करके मूल-सहित उसे प्रकाशित किया परन्तु टाइप में नहीं, लीथो में। प्रत्येक पृष्ठ को अपने ही हाथ से खींचे गये चित्रों से भी अलंकृत किया। ऐसा करने में किसी किसी पद्य के भाव को आपने चित्र में भी अलंकृत कर दिया। आपकी लिखी हुई चौरपञ्चाशिका की कापी लीथो में छपी हुई हमने खुद देखी और पढ़ी है। आपके नकल किये हुए पद्यों में से कई त्रुटियाँ हैं। परन्तु वे क्षम्य हैं।
फ्रेडरिक विनकाट, भट्ट मोक्षमूलर और अध्यापक मुग्धानलाचार्य की नागरी-लिपि के नमूने तो "सरस्वती" में निकल ही चुके हैं। डाक्टर ग्रियर्सन भी अच्छी देवनागरी लिपि लिख सकते हैं। उनसे और इन पक्तियों के लेखक से, एक दफे कविता की भाषा के संबंध में पत्र-व्यवहार हुआ। इस विषय में आपने अपने हाथ से बाबू हरिश्चन्द्र की सर्वश्रुति सम्मति लिख भेजी—"भाव अनूठी चाहिये, भाषा कोऊ होय"।
आपकी भी वही राय है जो बाबू हरिश्चन्द्र की थी। डाक्टर साहब अनेक पूर्वी भाषाओं और बोलियों के ज्ञाता है। हिन्दी भी आप बहुत अच्छी जानते हैं; परन्तु लिखते नहीं। हमारी प्रार्थना करने पर भी आपने हिन्दी में लेख लिखने की कृपा न की। कुछ भी हो, देवनागरी आप सफाई और शुद्धता के साथ लिख सकते हैं। इसमें सन्देह नहीं।
आर॰ पी॰ ड्यू हर्स्ट साहब इन प्रान्तों में सिविलियन हैं। कुछ समय पहले आप रायबरेली में डेपुटी कमिश्नर थे। आप हिन्दी, उर्दू और फारसी के अच्छे पण्डित हैं। शायद आप अरबी भी जानते हैं।