है। इस व्यापार का नाम शक्ति या अभिषा-वृत्ति है। उदाहरण—"घट" शब्द से नियमपूर्वक एक पात्र-विशेष का बोध होता है। इसलिये 'घ' पात्र-विशेष का वाचक और पात्र-विशेष उसका वाच्यार्थ है।
प्र॰—लक्षक शब्द किसे कहते हैं?
उ॰—जब किसी शब्द के वाच्यार्थ (अर्थात् मुख्यार्थ) से वाक्य का मतलब ठीक-ठीक समझ में नहीं आता तब उस शब्द का कोई और अर्थ ऐसा कल्पित कर लिया जाता है जिससे वाक्य का मतलब ठीक-ठीक निकल आवे। इस तरह का कल्पित अर्थ उस शब्द का लक्ष्यार्थ और वह शब्द उस अर्थ का लक्षक कहलाता है। इस शब्द-व्यापार या शब्द-शक्ति का नाम लक्षणावृत्ति है। उदाहरण—"प्लेग के डर से सारा शहर भाग गया"। इस वाक्य में "शहर" शब्द का वाच्य, अर्थात् मुख्य अर्थ प्रदेश-विशेष है। परन्तु किसी प्रदेश का भाग जाना असम्भव बात है। इसलिए "शहर" शब्द में रहने वाले आदमियों के अर्थ का लक्षक और शहर में रहने वाले आदमी उसका लक्ष्यार्थ है।
रूढ़ि और प्रयोजन के अनुसार लक्षणा होती है। जो लक्षणा रूढ़ि के अनुसार होती है उसे निरूढ़लक्षणा और जो प्रयोजन के अनुसार होती है उसे प्रयोजनवती लक्षणा कहते हैं। पूर्वोक्त उदाहरण में जो लक्षणा है वह निरुढ़-लक्षणा है; क्योंकि वह रूढ़ि के अनुसार हुई है।
प्र॰—व्यञ्जक शब्द किसे कहते हैं?
उ॰—वाच्य और लक्ष्य अर्थों के सिवा एक तीसरे ही अर्थ की प्रतीति जिस शब्द से होती है वह शब्द उस अर्थ का व्यञ्जक और वह अर्थ उस शब्द का व्यंग्यार्थ कहलाता है। उदाहरण—'गोविन्द