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शब्दार्थ-विचार

स्वामी की कुटी, प्रयाग में, त्रिवेणी पर है।' यहाँ त्रिवेणी शब्द के वाच्यार्थ जल-प्रवाह, के ऊपर कुटी का होना सम्भव नहीं। इसलिए लक्षणा करके त्रिवेणी शब्द से त्रिवेणी के तीर का अर्थ ग्रहण करना पड़ता है। त्रिवेणी के तट पर होने के कारण कुटी की शीतलता और पवित्रता की प्रतीति जो मन में होती है यह त्रिवेणी शब्द का व्यंग्यार्थ है और त्रिवेणी शब्द उस व्यंग्यार्थ का व्यञ्जक है। इस शब्द-व्यापार का नाम व्यञ्जनावृत्ति है। इस उदाहरण में जो लक्षणा की गई है वह कुटी के शीतलत्व और पवित्रत्व की विशेष प्रतीति होने के लिये है।

प्र॰—कितनी तरह से लक्षणा होती है?

उ॰—दो तरह से—वाच्यार्थ के सादृश्य के अनुसार और वाच्यार्थ के सम्बन्ध के अनुसार। उदाहरण—"देवदत्त, तुम आदमी नहीं, बैल हो।" यहाँ, बैल के बुद्धि-मान्द्य आदि गुण, अर्थात् धर्म, देवदत्त में होने से यह अर्थ हुआ कि यह बैल—अर्थात् बैल के सदृश हैं। इसलिए इस लक्षणा का नाम सादृश्य निबन्धना है। इसी को कोई-कोई गौणी-वृत्ति भी कहते हैं।

"प्लेग के डर से सारा शहर भाग गया"—इस उदाहरण में शहर शब्द से शहर-सम्बन्धी आदमियों का अर्थ, और "गोविन्द-स्वामी की कुटी, प्रयाग में, त्रिवेणी पर, है"—इसमें त्रिवेणी शब्द से त्रिवेणी-सम्बन्धी तट का अर्थ ग्रहण करना पड़ता है। इसलिये दोनों लक्षणायें सम्बन्ध-निबन्धना हैं।

प्र॰—सम्बन्ध-निबन्धना लक्षणा कितने प्रकार की होती है?

उ॰—दो प्रकार की—जहस्वार्था और अजहत्स्वार्था।

प्र॰—दोनों का अलग-अलग लक्षण क्या है?

उ॰—जहाँ वाच्यार्थ का बिलकुल ही त्याग होता है वहाँ जहत्स्वार्था होती है। जैसे, "प्लेग के डर से सारा शहर भाग गया"—इस