फिर 'नया' को इतना महत्व क्यों? जैसे 'नया' एक शब्द है, वैसे ही 'नई' भी है। देखिए, आपके नियम में फिर भी एक दोष निकल आया। 'नया' को बहुवचन में आप 'नये' लिखिए। पर कृपा करके 'नई' की 'नयी' लिखने का साहस न कीजिए। 'नई' पर 'नया' का कुछ भी प्रभुत्व नहीं। वह तो एक जुदा शब्द है। अतएव आप अपने नियम के फन्दे में डालकर लोगों से नयी, नयियाँ, नयियों को, नयियों ने इत्यादि रूप लिखाने का द्राविड़ी प्राणायाम न कराइये। दया कीजिये—व्यञ्जनों पर स्वरों का प्रभुत्व है। जो काम अकेले एक स्वर—ई—से हो सकता है उसे करने के लिये 'य्' को भी क्यों आप दिक करना चाहते है?
ग॰—अनेक बड़े-बड़े लेखक 'नयी' लिखते हैं। क्या वे सभी व्याकरण से अनभिज्ञ हैं?
दे॰—आप विचार करने चले हैं या औरों के व्याकरणज्ञान की माप? मैं मानता हूँ कि भाषा-रूप सागर का बहाव व्याकरण की दीवार से नहीं रुक सकता। यदि सभी बड़े-बड़े लेखक 'नयी' लिखने लगेंगे तो व्याकरण रक्खा रहेगा; रिवाज की जीत होगी। परन्तु जब तक ऐसा नहीं हुआ तब तक तो आप अपना नियम सँभाल कर बनाने की कृपा कीजिए और प्राकृतिक नियमों का गला न घोटिए।
ग॰—अच्छा, 'लिया' का बहुवचन 'लिये' लिखा जा सकता है, या नहीं?
दे॰—हाँ, लिखा जा सकता है।
ग॰—तो फिर 'इसलिए' लिखना गलत है?
दे॰—क्यों?
ग॰—इस कारण कि उसमें भी 'य' की आवश्यकता है।