पृष्ठ:साहित्य सीकर.djvu/८

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निवेदन

भाषा उन्नत हो या अनुन्नत, यदि वह किसी सभ्य और शिक्षित जन-समुदाय की भाषा है तो उसके साहित्य का समग्र ज्ञान सम्पादन कर लेना किसी साधारण मनुष्य का काम नहीं। अपनी हिन्दी भाषा ही को लीजिये। यद्यपि उसका साहित्य अभी तक विशेष समृद्ध नहीं, तथापि कोई आठ-नौ वर्ष से उसमें ग्रन्थ-रचना होती आ रही है। आधुनिक खोज से पता चला है कि चन्द-बरदायी ही हिन्दी का आदि-कवि नहीं। उसके पहले, ईसा की दसवीं शताब्दी में, जैन पण्डितों ने उस समय की हिन्दी में पुस्तक-प्रणयन का आरम्भ कर दिया था। इस दशा में अकेली हिन्दी ही के साहित्य का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेना किसी एक आदमी के लिए प्रायः असम्भव सा है। फिर यदि एक नहीं कई भाषाओं के साहित्य की ज्ञानप्राप्ति का दावा कोई करे तो उसका वह दावा कदापि साधारण नहीं माना जा सकता। इस पुस्तक में जो लेख संग्रहीत हैं उनमें हिन्दी के सिवा कई अन्य भाषाओं के साहित्य सम्बन्धी विचारों की भी पुट है। इससे यह न समझना चाहिये कि लेखक या संग्रहकार उन सभी साहित्यों का ज्ञाता है। उसने यदि दो बातें अपने ज्ञान के आधार पर लिखी हैं तो चार दूसरों के द्वारा वितरण किये गये ज्ञान के आधार पर। इसी से उसने इस साहित्य-लेख-संग्रह के नाम में सीकर-शब्द का प्रयोग किया है। सीकर कहते हैं छींटे को। अतएव साहित्य तथा उससे सम्बद्ध जिन अन्य विषयों की चर्चा उसने इस पुस्तक में की है उस चर्चा को पाठक, अपने-अपने विषयज्ञान की छींटे मात्र समझने की कृपा करें।

ज्ञान-सागर की थाह नहीं, उसकी इयत्ता नहीं। अल्पज्ञ मनुष्य अपने आप बहुत ही थोड़ी ज्ञान-प्राप्ति कर सकता है। ज्ञान की अधिकांश प्राप्ति उसे अपने पूर्ववती विद्वानों के द्वारा वितरित ज्ञान ही से होती है। इस दशा में जो लोग पूर्व संचित ज्ञान से लाभ उठाते हैं और उससे दूसरों को भी लाभान्वित करने की चेष्टा करते हैं उनका