पृष्ठ:साहित्य सीकर.djvu/९

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यह कार्य्य यदि स्तुत्य नहीं तो निन्द्य भी नहीं कहा जा सकता। अतएव इस पुस्तक में सन्निविष्ट लेख लिखने में दूसरों के ज्ञान से लाभ उठाने के लिए इस निवेदन का कर्त्ता क्षमा करने योग्य है!

इसमें जिन लेखों का समावेश है उन सबका कुछ न कुछ संबंध साहित्य से अवश्य है—वह साहित्य चाहे हिन्दी का हो, चाहे प्राकृत का, चाहे लौकिक या वैदिक संस्कृत का। कापी-राइट ऐक्ट एक ऐसा कानून है जिसका ज्ञान प्रत्येक पुस्तक प्रकाशन और साहित्य सेवी लेखक को होना चाहिये। इस कानून पर भी दो लेख इस संग्रह में मिलेंगे। विदेशी विद्वान क्यों और कितना श्रम उठाकर संस्कृत भाषा सीखते हैं, इसका भी निदर्शन इस पुस्तक में किया गया है। इसके सिवा अन्य लेख भी इसमें ऐसे ही रक्खे गये हैं जो साहित्य क्षेत्र की सीमा के सर्वथा भीतर ही हैं। आशा है, साहित्य-सेवी और साहित्यप्रेमी सभी के मनोरंजन की कुछ न कुछ सामग्री उनसे मिलेगी। यदि उनसे किसी की ज्ञानवृद्धि अथवा मनोरंजन न भी हो, तो भी पाठकों को उनसे इतना तो अवश्य ही मालूम हो सकेगा कि जिस समय वे लिखे गये थे उस समय हिन्दी में किस प्रकार के लेखों के प्रकाशन की आवश्यकता समझी जाती थी तथा उस समय की स्थिति से आजकल की स्थिति में कितना अन्तर हो गया है। सौभाग्य से, आगे, किसी समय यदि हिन्दी-साहित्य का इतिहास लिखने का उपक्रम हुआ तो इतिहास-लेखक को, साहित्य की सामयिक अवस्था की तुलना करने में, इस पुस्तक से थोड़ी-बहुत सहायता अवश्य ही मिलेगी। क्योंकि इसमें हर लेख के नीचे उसके लिखे जाने का समय दे दिया गया है।

इस संग्रह में कुछ लेख औरों के भी हैं। पर अभिन्नात्मा समझे जाने के कारण उनके भी वे लेख इसमें रख दिये गये।

दौलतपुर (रायबरेली)
१ जनवरी, १९२९