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साहित्य-सीकर

इस कानून में सब मिलाकर ३७ दफा हैं और मूल ग्रन्थ, अनुवाद, संग्रह कोष, सामयिक पुस्तक समाचार-पत्र आदि सब के साथ इसका सम्बन्ध है।

जो मनुष्य जिस ग्रंथ की रचना करता है उसको प्रकाशित करने का उसे पूर्ण अधिकार होता है। उसके सिवा अन्य किसी को यह अधिकार प्राप्त नहीं कि उस ग्रन्थ को प्रकाशित करे या उसका नवीन संस्करण निकाले या उसका अनुवाद करें। यहाँ तक कि असली ग्रन्थकर्त्ता को छोड़कर दूसरों की यह भी मजाल नहीं कि अन्य व्यक्ति के बनाये हुये ग्रन्थ का नाटक के रूप में लिखे अथवा ग्रामोफोन में भरकर सर्वसाधारण को सुना सकें। परन्तु यह अधिकार सबको प्राप्त है कि दूसरों के बनाये हुये ग्रन्थों की समालोचना करे या उनका सारांश लिखें।

ग्रन्थकर्त्ता और उसके उत्तराधिकारियों का ग्रन्थकर्त्ता के जीवनकाल में तथा पचास वर्ष बाद तक ग्रन्थ के ऊपर स्वत्वाधिकार प्राप्त है। तदनन्तर जो चाहे वह उस ग्रन्थ को छाप सकता है। इस मियाद के अन्दर ग्रन्थकर्त्ता और उसके उत्तराधिकारियों को यह अधिकार है कि वे अपनी पुस्तक का प्रकाशित करने या उसके अनुवाद करने का स्वत्वाधिकार दूसरे के हाथ बेंच डाले। इस दशा में पुस्तक का स्वत्वाधिकार केवल पच्चीस वर्ष तक खरीदनेवाले को प्राप्त रहता है। उसके बाद उसका यह अधिकार नष्ट हो जाता है। अर्थात् वह पुस्तक का स्वत्वाधिकार खरीदने की तारीख से पच्चीस वर्ष के बाद उसे प्रकाशित नहीं कर सकता और न उससे कोई लाभ उठा सकता है। उस समय यह अधिकार ग्रन्थकर्त्ता या उसके अधिकारियों को फिर प्राप्त हो जाता है।

यह हम ऊपर लिख चुके हैं कि ग्रन्थकर्त्ता के मरने के बाद से लेकर पचास वर्ष पीछे तक उसके उत्तराधिकारियों को पुस्तक पर