सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त रहता है और केवल वही उसको प्रकाशित कर सकते हैं। परन्तु यदि ग्रन्थकर्त्ता के उत्तराधिकारी इस अवधि के अन्दर पुस्तक प्रकाशित न करें तो अदालत के आज्ञानुसार अन्य लोग उस ग्रन्थ को प्रकाशित कर सकते हैं। इस दशा में इस कानून के अनुसार उनका यह कर्त्तव्य है कि वे ग्रन्थकर्त्ता के वारिसों को प्रकाशित पुस्तक के मूल्य का दसवाँ हिस्सा दें। यदि कोई मनुष्य पुस्तकों के स्वत्वाधिकार या कापीराइट के कानून को तोड़े, अर्थात् दूसरे की बनाई पुस्तक का बिना उसकी आज्ञा के प्रकाशित या अनुवादित करे, तो पुस्तक के स्वत्वाधिकारी को यह अधिकार है कि वह इस अपराध के तीन वर्ष के अन्दर अदालत में हरजे का दावा करे। यदि अदालत को वह निश्चय हो जायगा कि मुद्दई ही वास्तव में उस पुस्तक का स्वत्वाधिकारी है तो वह इस प्रकार कानून के विरुद्ध प्रकाशित की हुई पुस्तक की सम्पूर्ण प्रतियां प्रकाशक से छीनकर वास्तविक स्वत्वाधिकारी को दे देगी। परन्तु यदि प्रकाशक अर्थात् मुद्दाइलेह इस बात को साबित कर दे कि वह नेकनियती के साथ इस बात पर विश्वास करता था कि पुस्तक पर किसी को भी कानूनी स्वत्वाधिकार प्राप्त नहीं है और उसने वास्तव में गलती से ऐसा काम किया है तो अदालत मुद्दई को केवल हरजाना दिलावेगी और प्रकाशित पुस्तक की सारी प्रतियाँ मुद्दाइलेह की रहेंगी।
यदि इस कानून के विरुद्ध कोई पुस्तक अन्य देशों में प्रकाशित की जाय तो वह पुस्तक के स्वत्वाधिकारी के निवेदन करने पर, सरकारी आज्ञानुसार, देश के अन्दर न आने पावेगी।
यदि एक ग्रन्थ को कई मनुष्य मिलकर लिखें तो सब लेखकों को उस पर स्वत्वाधिकार प्राप्त होगा। यह अधिकार उस आंशिक ग्रंथकार के जीवनकाल तक जो पहले मरे तथा उसके बाद पचास वर्ष तक अन्यकर्त्ताओं को प्राप्त रहेगा। अथवा केवल उस आंशिक ग्रन्थकर्त्ता