पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१९८

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बीसवां अध्याय १६७ रविशंकर - कोई भी सहृदय व्यक्ति, जिसे संगीत कला के प्रति थोड़ा सा भी अनुराग हो, पं० रविशंकर के नाम से अपरिचित न होगा। वर्तमान सितारवादकों में रवि जी अप्रतिम स्थान रखते हैं। सितार की श्रुतिमधुर स्वरलहरियों से अापने, जहाँ भारत के कोटि-कोटि मानव-हृदयों को झंकृत किया है वहां विश्व के अन्य अनेक राष्ट्रवासी भी रवि जी के इस चमत्कार से अछूते नहीं बचे। विदेशी संगीत प्रेमियों के हृदय पटल पर भारतीय संगीत की अमिट छाप छोड़ने वाले रवि जी, न केवल भारत के, अपितु समस्त अन्तर्राष्ट्रीय जगत के लोकप्रिय संगीतकार हैं। भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक नगरी काशी में ७ अप्रैल १९२० ई० को पं० रविशंकर का जन्म हुआ । आपके पिता पं० श्यामाशंकर जी उच्चकोटि के विद्वान और प्रबल संस्कारी व्यक्ति थे। उन्होंने अपने चार पुत्र छोड़े, जिनमें प्रख्यात नृत्यकार उदयशंकर जी सबसे बड़े और रविशंकर सबसे छोटे हैं। रवि जी किशोरावस्था से ही अपने भ्राता के नर्तक दल में प्रविष्ट होकर संगीताभ्यास में संलग्न होगए। १८ वर्ष की आयु तक, जहाँ इनका संगीतज्ञान परिपक्व हुआ वहां इन्होंने नर्तक दल के माध्यम से समस्त विश्व की यात्रा भी करली। १६३५ ई० में आप महान् संगीतज्ञ उस्ताद अलाउद्दीन खाँ के सम्पर्क में आये। उस्ताद, रवि जी की प्रतिभा से बड़े प्रभावित हुए और इन्हें नृत्य के क्षेत्र से निकाल कर संगीत के क्षेत्र में ले आये। १६३८ ई० में रवि जी मैहर आकर उ० अलाउद्दीन खाँ के शिष्य हो गये। अदम्य उत्साह, प्रगाढ़ विश्वास और अथक परिश्रम से साधना प्रारम्भ हो गई। छः वर्ष की तपस्या आशा से अधिक फलीभूत हुई। इस समय रवि जी उच्चकोटि के सितारवादक बन गये। इसी बीच, सन् १९४१ ई० में उस्ताद अलाउद्दीन खाँ ने अपनी पुत्री श्रेष्ठ संगीतज्ञा अन्नपूर्णा का विवाह भी रविशंकर के साथ कर दिया। कला के इस मधुर संगम ने दाम्पत्य जीवन को पूर्णतः कलावारिध में शराबोर कर दिया। पं० रविशंकर के सितार वादन को अद्वितीय कहना चाहिये। सितार में आलाप, जोड़ तथा वीणा के क्लिष्ट अंगों को मौलिक ढंग से साधकर रवि जी ने अपनी अपूर्व प्रतिभा का परिचय दिया है। वाद्यवृन्द के क्षेत्र में जैसा मौलिक और प्रभावपूर्ण कार्य इनके द्वारा सम्पन्न हुआ है, उसे सभी संगीत प्रेमी जानते हैं। आकाशवाणी, दिल्ली पर रहकर रवि जी ने अनेक वाद्यवृन्दों की रचना की है। लय पर असाधारण अधिकार, बेमिसाल तैयारी, स्वर्गीय माधुर्य सभी कुछ तो इनके सितार वादन में निहित है । अभी कुछ समय पूर्व से रविशंकर जी आकाशवाणी की सेवाओं से मुक्त होकर देश-विदेश का भ्रमण करने में संलग्न हैं। अमेरिका, इंगलैंड, जापान, रूस इत्यादि राष्ट्रों में आपके कार्यक्रमों की भूरि-भूरि प्रशंसा हुई है।