पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१९९

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सितार मालिका विलायतखाँ वर्तमान युग । के लोकप्रिय और मधुर सितारवादक विलायत खाँ का आविर्भाव ऐसे कुल में हुआ है, जिसमें कई पीढ़ियों से सितारवादन की कला विकसित और परिवर्द्धित होती चली आयी है। आपके पिता उस्ताद इनायत खाँ और बाबा इम्दाद खाँ अपने-अपने युग के अप्रितम सितारवादक रहे । सन् १८२६ ई० में, जन्माष्टमी की रात को गौरीपुर में विलायत खाँ का जन्म हुआ। आपका बचपन अधिकांश कलकत्ता नगर में व्यतीत हुआ और इसी जगह १२ वर्ष की आयु तक इन्होंने अपने पिता इनायत खाँ से सितार की शिक्षा ग्रहण की। दुर्भाग्य वश इन्हीं दिनों उस्ताद इनायत खाँ का स्वर्गवास होगया। १३ वर्ष की आयु में, अपनी माता जी के साथ विलायत खाँ दिल्ली चले आये यहाँ आकर आपने अपने नाना उस्ताद बन्देहसन खाँ से लगभग ४ वर्ष तक गायकी तथा सुर बहार की शिक्षा ग्रहण की। सन् १९४४ में काँग्रेस कमेटी द्वारा आयोजित बम्बई के एक सङ्गीत-समारोह में, विलायत खाँ ने अपने सितार वादन द्वारा उपस्थित श्रोताओं का हृदय झकझोर डाला, लोगों ने मुक्त कण्ठ से इनकी प्रशंसा की। यहीं से इनकी कीर्ति का अभ्युदय हुअा, तत्पश्चात् भारत के विभिन्न नगरों में होने वाले सङ्गीत-सम्मेलनों में भाग लेकर विलायत स्वाँ ने भारत के कोने-कोने में अपने सितार वादन की धूम मचादी। यह क्रम अभी तक निर्बाध गति से चल रहा है। आकाश वाणी के विभिन्न केन्द्र भी इनका सितार वादन प्रसारित करते रहते हैं। विलायत खाँ का सितार वादन अपने ढङ्ग में अद्वितीय है। गतकारी से पूर्व जोड़ और अलाप का कार्य आकर्षक है। अधिकांश मसीदखानी गते प्रदर्शित करते हैं जिनकी लय बड़ी विचित्र होती है। विलम्बित लय में तानों के विभिन्न प्रकार श्रवणीय होतेहैं । द्रुतलय में लाग-डाट, क्रंतन, मींड़, कण और जमजमे का कार्य प्रशंसनीय होता है। रूस, हॉलेण्ड, पोलेण्ड, जर्मनी, इगलेण्ड, अफ्रीका इत्यादि विदेशों का भ्रमण करके विलायत खाँ ने भारतीय सङ्गीत का सम्मान बढ़ाया है। ऐसे यशस्वी कलाकार से अनेक अाशाएं हैं। आजकल आप बम्बई में निवास करते हैं।