पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२११

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१८० सितार मालिका . में मरे, रेप, और नि ध नि ऽ सा की संगत विशेषतया आती है। रेप, म प ध सांध प म, यह स्वरसमुदाय शुद्ध मल्लार के हैं अतः इसमें रे ग रे म ग रे सा जोड़ देने से यह राग तुरन्त स्पष्ट होता है। मध्यम वादी तथा षड्ज सम्बादी है । मध्यम पर न्यास राग के सौन्दर्य को बढ़ाता है। इसके आरोह में निषाद अल्प रखते हैं। जाति संपूर्ण-संपूर्ण है । वक्र रूप से स्वरों को लगाने से अधिक माधुर्य बढ़ता है । गान समय वर्षा ऋतु है । आरोही-सा रे ग म, म प ध नि सां और अबरोही सां ध न प म ग रे सा है। मुख्यांग--रे ग रे म गरे सा, म प ध सां, ध प म है। इसी आधार पर अलाप निम्न प्रकार है सा 5 रे ऽ ग म s, रे ग रे म ग रे मा, धध प ध सा, मा नि ध नि नि सा, नि प म प ध ध नि ध नि नि मा, म रे रेप 5 प, म ग म, रे ग म प म ग म रे, गऽम. रे ग म प ग, म प ध न प म, रे रे प. म प, म नि प. ध नि ध प म प म, ग ग म, प म. रे ऽ ग म प रे ग रे म ग रे सा सा । म ग रे ग रे सा, रे ग म ग रे सा, रे ग म प, मरे रेप, म ध प ऽगम, म प ध नि सांध नि ध प म प म ग रे ग म, म रे प म ध सां ध प म, म प ध नि सां रें सां ध प म, सां ध ध प म. म प ध नि नि ध प म. पनि सां, नि नि सां, रेंग रें मंगं रे सां, रे ग रे म ग रे सा, सां ध नि प म प म ग, रे ग रे म ग रे सा सा। मरे पऽ म प ध सां, ध ध सां, रऽ सां, ध नि प, ध नि सां रें नि सां ध नि प. म. ध प म, ध नि सां नि ध प म, सां ऽ ध प म, रें सांऽ ध प म, रें गं रें मंगं रें सांऽ ध नि प, ध प म, म प ध नि सां रें सां नि ध प, ध नि ध प म ग, रे गरे म ग रे सा। . तानें-(१)–रे ग रे म ग रे सा सा. रे ग रे प म ग रे ग रे म ग रे सा सा, रे ग रे पध प म ग रे ग रे म ग रे सा सा, रे गरे प म प ध सां ध प म गरे ग रे म ग रे रे ग म प, सांरें सां नि ध प ध नि ध प म प म ग रे ग रे म ग रे सा मा। सा सा, २-म ग म म रे रे सा सा, म रे प प ध प म प म ग म मरे रे सा मा. ध नि ध प सां रें नि सां प ध म प म ग म म रे रे सा सा, रें रें सां सां ध प म प म रे प प ध सां ध प म ग म म रे रे सा सा, मं गं रें गंरें सां नि सां, ध प म रे पप ध प म ग म म रे रे सा सा। ३–रे ग म ग रे सा, रे ग म प ध प म प म ग रे सा. रे ग म प ध सां ध प म प म ग रेग म गरे सा, रे ग म प ध सां रेंरें सां रें सां नि ध प ध नि ध प म प म ग रे ग म ग रे सा, रेंरें सां, रेंरें सां नि सां, धध प, ध ध प म प, म रे प प ध प म परे ग म प म ग रे सा । १३--गौड़ सारङ्ग- इम राग में दोनों मध्यम तथा शेष स्वर शुद्ध लगते हैं। इस राग की जाति वक्र- मम्पूर्ण है। अर्थात् सरल रूप से आरोही-अवरोही न लेते हुए यदि वक्र रूप से लेकर गाया जाय तो राग तुरन्त स्पष्ट होता है। तीत्र मध्यम केवल आरोही में ही लिया