पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२२०

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इक्कीसवाँ अध्याय १८६ ३- ग ग रे ग रे सा, म म ग म ग रे, प प म प म ग, ध ध प ध प में, नि नि ध नि ध प, सां सां नि सां नि धु, रे रे सा रे सां नि, गं गं रेंग रे सांधु सां नि ध, प नि ध प, स ध प म, ग प म ग, रेम गरे, सा ग रे सा । २२-- --दरवारी यह आसावरी अङ्ग का राग है। इसमें ऋषभ शुद्ध एवं शेष स्वर कोमल लगते हैं। अवरोह में धैवत को बर्जित कर देते हैं अतः जाति संपूर्ण-घाडव है। इस राग का विस्तार मन्द्र सप्तक में किया जाता है। अत्यन्त गंभीर प्रकृति का राग है। आरोह में गान्धार को अल्प रखते हैं और तानों में तो प्रायः छोड़ ही देते हैं, इस प्रकार कुछ सारंग की झलक दिखाई देती है। मध्य सप्तक में नि प और नि ग की मींड अत्यन्त सुन्दर लगती है । पूर्वाङ्ग में आसावरी से बचाने के लिये म ग रे मा जैसा सरल अवरोह न करके गान्धार को वक्र कर देते हैं। जैसे गऽ म रे सा । गान्धार और धैवत पर विशेष आन्दो- लन देने से राग में सुन्दरता आती है। मिया मल्लार और दरबारी में नि सा रे ग म प तक ही समान स्वर हैं । अतः अलाप में दरबारी को मलार से बचाने के लिये नि सा रे की मुरकी आवश्यक है। जैसे नि 5 सा रेऽ सा रे गऽऽ म रे ऽ यह स्वरसमुदाय दरबारी और मल्लार में समान रूप से आता है अब यदि इसमें नि सा रे सा की मुरकी जोड़कर एक दम मन्द्र धैवत पर आजायें तो दरबारी तुरन्त स्पष्ट होती है। ऐसा न करने से अब तक तीव्र धैवत नहीं लगता श्रोताओं को राग पहिचानने में कठिनाई होती है। वादी ऋषभ तथा संवादी पञ्चम है। गान समय रात्रि का द्वितीय प्रहर है । आरोह- ई-सा रे ग म प, धुs नि ऽ सां और अवरोह–सांधु ऽ नि प म प ग म रे सा है। मुख्यांग-नि 5 सा रे ग , म रे सा, नि सा रे सा ध ऽ नि प। कहा जाता है कि इस राग की रचना मिंया तानसेन ने की थी। आलाप- सा, नि ऽ सा रे, सा रे ग म रेऽ सा, निसा रेसा धु ऽ नि प, मऽ ऽध 5 नि ऽ रे सा, नि रे, ध नि सा, धू रे सा रे नि सा रेध, नि पऽ म प ध नि प, रे ऽ रे सा रे नि सा रे ध नि प, म पध ऽनि रे ऽ सा । सा रे गुऽ म रे ऽ, गs म प ग ऽ म रे, गऽ म प ध नि प म प गऽ मरे, सा रे ग म प ध निप, म नि प, नि म प ग , म पनि ग म रे ऽ, म पऽ, निप मप गु , म रे ऽ रेसा निसा धू ऽ नि रे 5 सा। म प ध ऽ ऽ नि प, प ग म प, म प ध नि प, म प ध नि ऽ रे सांड, नि 5 सां रें, रेंग रेंसां निसां रें, रेंसां निसां ध 5 नि प, ऽपऽधु ऽ निऽ रे सां, सां रें गं ss मं रें 5 सां, नि सां रें धु ऽनि प, म प नि ग, म रे ऽ सा। म