पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२८

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तृतीय अध्याय सितार की बैठक, सीधे हाथ की तैयारी एवं मिठास उत्पन्न करने के रहस्य जिस प्रकार विचित्र-वीणा में केवल एक ही बोल 'डा' होता है, उसी प्रकार सितार में मुख्य बोल केवल 'डा' और 'डा' होते हैं। कुछ लोग इन्हें 'दा' और 'रा' भी कहते हैं। अतः हम भी दोनों का ही प्रयोग करेंगे । सितार की बैठक या सितार पकड़ना- बांये पैर की जंघा पर सीधे पैर की पिंडली को रखकर बजाने में कुछ सरलता रहेगी । कुछ विद्वान इसी स्थिति में बैठकर, बांये पैर के तलवे के ऊपर सितार को रखकर बजाते हैं। यदि किसी को इस प्रकार चौठने में असुविधा हो तो किसी भी सुख-आसन से बैठा जा सकता है। फिर सितार के तूबे को अपनी सीधी ओर इस प्रकार तिरछा रखा जाय कि सीधे हाथ की कोहनी और पहुँचे के बीच के भाग से सितार का तूंबा दबा रहे । साथ-साथ बायाँ हाथ जिस परदे पर ले जाना चाहें सरलता से चला जाये । (प्रचलित तीन बैठक चित्र नं० अ, ब, द में देखिये)। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये कि यदि आप दोनों हाथों की अँगुलियों से सितार को न पकड़ें तब भी सितार गिरना नहीं चाहिये । साथ-साथ सितार को इतना मोड़ना भी नहीं चाहिये, और न उस पर इतना मुकना ही चाहिये कि बजाते समय परदों को देखना पड़े। बल्कि डांड का वह भाग जिसमें तांत बाँधी रहती है, नेत्रों के सामने छाती से एक बालिश्त दूर रहना चाहिये ( देखिये चित्र नम्बर १)। सितार के परदों को सही बजाने के लिये तांत को ही देखकर स्वर बजाने का अभ्यास करना चाहिये। बाएँ हाथ के अँगूठे का संचालन अँगुलियों के साथ ही होना चाहिये । कोई- कोई विद्यार्थी अँगूठे को रोक लेते हैं और उङ्गली दो-तीन स्वरों पर आगे चली जाने के बाद अँगूठा खींचते हैं, जो कि गलत है। सही अभ्यास शुरू से ही डालना चाहिये । मिज़राब पहिनना- मिज़राब को सीधे हाथ की तर्जनी अंगुली में इस प्रकार पहिनना चाहिये कि लम्बा हिस्सा नाखून के ऊपर रहे। इस बात का बहुत ध्यान रखना चाहिये कि मिजराब तर्जनी अंगुली के प्रथम जोड़ से ऊपर न चढ़ जाय, अन्यथा अँगुली के द्रुत संचालन में रुकावट पड़ेगी। (चित्र नं०२ व ३ देखिये)