पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/१२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सिद्धान्त और अध्ययन पाश्रयपद 'लोचन टेक परे सिसु जैसे ।। माँगत हैं हरि-रुप-माधुरी खोज परे हैं जैसे । बारंबार चलावत उतहीं रहन न पाऊँ वैसे । जात चले अपुन ही अब लौं राखे जैसे तैसे ।'


नयन (सूरदास कृत नयन सम्बन्धी पदों का संग्रह, पृष्ठ ६१)

'अंखियनि यहई टेव परी। कहा करौं बारिज-मुख ऊपर लागति ज्यौं भ्रमरी ॥' -नयन (सूरदासकृत नयन-सम्बन्धी पदों का संग्रह, पृष्ठ ७६) सौन्दर्य-वर्णन के साथ चरित्रचित्रण का भी प्रश्न उपस्थित हो जाता है। आलम्बन के प्रापे या आत्मभाव (Personality) में उसका रूप और चरित्र . सभी कुछ आजाता है। यद्यपि हमारे यहाँ नायक और चरित्र-चित्रण विशेषकर नायिकाओं का वर्गीकरण हास्यास्पद कोटि तक पहुँच गया है और उनमें नायकों और नायिकाओं के सामान्य या ढांचे (Types) उपस्थित करने की प्रवृत्ति दिखाई देती है तथापि हमारे यहाँ व्यक्तित्व की अवहेलना नहीं की गई है । नाटकों में तो व्यक्तित्व काफी निखरा हुआ रहता है। धीरोदात्त नायक एक सामान्य ( Type ) अवश्य है किन्तु राम और युधिष्ठिर का व्यक्तित्व भिन्न है, इसी प्रकार दुष्यन्त और अग्निमित्र दोनों ही धीरललित हैं किन्तु उनका व्यक्तित्व एक नहीं है। ____सामान्य और व्यक्ति का समन्वय ही चरित्र-चित्रण की मूल समस्या है। यदि पात्र अधिक सामान्य की ओर जाता है तो उसका अस्तित्व नहीं रहता है और यदि वह सामान्य से बहुत हट जाता है तो पागल या विक्षिप्त कहलाने लगता है, इसलिए सफल पात्र वे ही हैं जो सामान्य से दूर न होते हुए भी अपनी विशेषता बनाये रखते हैं और उसके कारण वे पहचाने जा सकते हैं। एक सफल पात्र में दोनों ही अंश होते हैं। उसको जो-कुछ समाज से मिलता है वह उसका सामान्य अंश होता है और जो व्यक्ति स्वयं अपनी गाँठ का लाता है वह उसका वैयक्तिक भाग होता है, फिर भी कुछ पात्र सामान्य की ओर अधिक झुके हए होते हैं और कुछ व्यक्तित्व की अोर । सामान्य की ओर झुके हुए पात्र सरल होते हैं और व्यक्तित्व की ओर झुके हुए पात्र अपेक्षाकृत पेचीदा किन्तु यह बात नियमरूप से नहीं स्वीकृति हो सकती है। आचार्य शुक्लजी ने मंथरा को सामान्य ( Type ) पात्र ही माना है। अपनी मालकिन की हित-कामना तथा इधर की उधर लड़ाने