पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/१९९

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रस-निष्पत्ति-अभिनवगुप्त का अभिव्यक्तिवाद अर्थात् स्थायी भाव, विभाव, सात्विक और व्यभिचारी भावों द्वारा प्रास्वाद्य होकर रस बन जाता है । प्रागे चलकर यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि रस सामाजिक को ही प्राप्त होता है क्योंकि वह वर्तमान है। न वह अनुकार्यों में रहता है क्योंकि वह वर्तमान नहीं रहते हैं अर्थात् मर-मुल्तान चले जाते हैं और न वह कृति ( काव्यादि ) में रहता है क्योंकि उसका वह उद्देश्य नहीं है। उसका उद्देश्य तो विभावादि को सामने लाना है जिनके द्वारा स्थायी भाव प्रकाश में आता है। न रसद्रष्टा द्वारा अनुकर्तामों के अनुभव की प्रतीति है क्योंकि जैसा कि लौकिक व्यवहार में होता है कि दूसरों की रति देखने से लज्जा, ईर्ष्या आदि भिन्न-भिन्न भावों की उत्पत्ति होगी। वास्तव में दर्शक की अवस्था उस बालक-की-सी होती है जो मिट्टी के हाथी से खेलता हुअा अपने ही उत्साह का आनन्द लेता है। उसी प्रकार अर्जुन आदि का वर्णन पढ़कर या अभिनय देखकर पाठक वा दर्शक अपने ही हृदयस्थ स्थायी भावों का आनन्दास्वादन करते हैं, देखिए :-- 'क्रीडतां मृण्मयैर्यद्वबालानां द्विरदादिभिः ।' 'स्वोत्साहः स्वदते तद्वच्छ्रोतृणामर्जुनादिभिः ॥' ..... .. --दशरूपक (४१, ४२) - धनञ्जय का अभिनवगुप्ताचार्य से केवल इतना ही अन्तर है कि धनञ्जय ने व्यञ्जना को नहीं माना है, तात्पर्यवृत्ति से ही काम चलाया है और अभिनव- गुप्त ने व्यञ्जना को मुख्यता दी है। :: • अन्य मत :-रसगंगाधर में इन मतों के अतिरिक्त कई और मतों का उल्लेख किया गया है. उनमें से एक जो संसार को रज्जु के साँप की भाँति मिथ्या मानने वाले शाङ्कर वेदान्त से सम्बन्ध रखता है, विशेष रूप से उल्लेख- नीय है । रस की यह व्याख्या शुक्ति ( सीप) में रजत (चाँदी ) की भ्रान्त अनुभूति के आधार पर चलती है। सीप को जब हम चाँदी समझते हैं तब एक विशेष दोष के कारण सीप के सीपपने पर पर्दा-सा पड़ जाता है और रजत . का उस पर आरोप हो जाता है, अर्थात् हमारी चित्तवृत्ति रजत-प्रधान हो जाती है । वह अनुभव सदसत् से विलक्षण अनिर्वचनीय होता है । हम जब वास्तविक दुष्यन्त और शकुन्तला की रति का वर्णन पढ़ते हैं या नाटक में उसका अभिनय देखते हैं तब उसमें वास्तविक दुष्यन्त-शकुन्तला की रति पर पर्दा पड़, जाता है और एक नई परन्तु अनिर्वचनीय रति की सृष्टि होती है जो हमारे : चित्त को व्याप्त कर लेती है । आत्मा का प्रकाश पड़ने से वह रसरूप हो जाती है ।