पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२०४

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१६८ सिद्वान्त और अध्ययन अर्थात् भावकत्व साधारणीकरण है। उस व्यापार से विभावादि और स्थायी का भी साधारणीकरण होता है। साधारणीकरण क्या है.--.-सीतादि विशेषों का कामनीरूप से उपस्थित होना, सीता सीता नहीं वरन् कामिनी- मात्र रह जाती है। स्थायी और अनुभावों के साधारणीकरण या अर्थ है-- सम्बन्ध-विशेष से स्वतन्त्र होना अर्थात् मेरे या पराये के बन्धन से मुक्त होना । अभिनवगुप्त ने भट्टनायक के मत का उल्लेख करते हुए लिखा है :- h: "निविड़ानिजमोहसंकरतानिवारणकारिणा विभावादिसाधारणीकरणात्मना अभिधातो द्वितीयेनोशेन भावकत्वव्यापारेण भाव्यमानो रसः।' . , इसमें बतलाया गया है कि भावकत्व द्वारा भाव्यशान होकर अर्थात् अस्वाद- योग्य बनाया जाकर रस की निष्पत्ति होती है। भावकत्व को अभिधा के बाद का द्वितीय व्यापार कहा है और अपनी संकीर्णता निवारण करने वाले विभावादि के साधारणीकरण को ही भावकत्व की प्रात्मा कहा है । साधारणी- करण और भावकत्व एक वस्तु है। विभावादि में अनुभव, सञ्चारी, स्थायी सभी पाजाते हैं। ..., साधारणीकरण और व्यक्तिवैचित्र्यवाद के सम्बन्ध में जो समस्या प्राचार्य जी ने उठाई है उसका वास्तविक महत्त्व है । वह साधारणीकरण के स्पष्टीकरण ............ के लिये आवश्यक है। उन्होंने बतलाया है कि 'कोचे' के मत साधारणीकरण के अनुसार काव्य का काम है-कल्पना में बिम्ब (Iimages) ... और या मूर्त भावना का उपस्थित करना, बुद्धि के सामने कोई व्यक्तिवैचित्र्यवाद विचार या बोध (Concept) लाना नहीं (तर्क, दर्शन, विज्ञान .हमारे सामने बोध उपस्थित करते हैं),कल्पना में जो कुछ उप- स्थित होगा वह व्यक्ति या वस्तु-विशेष ही होगा । सामान्य या जाति की तो मूर्त भावना हो ही नहीं सकती, इसका समाधान शुक्लजी नीचे के शब्दों में इस प्रकार करते हैं :-- ., "साधारणीकरण' का अभिप्राय यह है कि पाठक या श्रीता के मन में जो व्यक्ति विशेष या घस्तु विशेष प्राती है वह जैसे काव्य में वर्णित 'आश्रय' के भाव का आलम्बन होती है वैसे ही सब सहृदय पाठको या श्रोताओं के भाव का पालम्बन हो जाती है। - तात्पर्य यह है कि पालम्बन रूप में प्रतिष्ठित व्यक्ति, समान प्रभाववाले कुछ धर्मों की प्रतिष्ठा के कारण, सबके भावों का पालम्बन हो जाता है।' -चिन्तामणि : भाग १ (पृष्ठ ३१२ तथा ३.१३) • इस सम्बन्ध में मेरा इतना ही विनम्र निवेदन है कि व्यक्ति कुछ समान