पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/२२१

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कवि और पाठक के व्यात्मक व्यक्तित्व-कवि के दो व्यक्तित्व १८१ कर अस्मादयोग्य बनाया जाता है देखिए :- 'बागङ्गमुखरागात्मनाभिनयेन्त सत्यलक्षणेन चाभिनयेन करणेन कवेः साधारणं तदपि वर्णनानिपुणस्य यः अन्तर्गतोऽनादिप्राक्तनसंस्कारप्रति भानमनयो न तु लौकिक विषयजः रागान्ते एव देशकालादिभेदाभावात् सर्व- साधारणीभावेन पास्वादयोग्यः तं भावयन् प्रास्वादयोग्यी कुर्वन् भावश्चित्त- वृत्तिलक्षण एव उच्यते । -डाक्टर दास गुप्त के काव्यविचार में उद्धत (पृष्ठ १३२) अभिनवगुप्त के इस कथन से यह स्पष्ट है कि कवि अपने लौकिक अनुभव को नहीं देता है, वह नट के अभिनय द्वारा साधारणीकृत हो आस्वादयोग्य बनता है । प्रश्न यह है कि क्या वियोगी कवि की आह सीधी ही आती है अथवा साधारणीकृत होकर, वाल्मीकि का क्रोञ्चद्वन्द्ववियोगोत्थित शोक किस प्रकार श्लोक बना ? वास्तव में कवि के दो व्यक्तित्व होते हैं-एक लौकिक और दूसरा साधारणीकृत सहानुभूतिपूर्ण कलाकार का व्यविक्षत्व । इसके अतिरिक्त उसका ( भावक का ) तीसरा व्यक्तित्व भी होता है । कवि के दो व्यक्तित्व लौकिक व्यक्तित्व में वह साधारण मनुष्य की भांति सुख में हँसता है और दुःख में रोता है किन्तु उसका ( कलाकर का.) व्यक्तित्व उसके रोने में भी एक सरीला राग भर देता है। उसके निजी व्यक्तित्व का सुख-दुःख कलाकार को बल अवश्य दे देता है किन्तु कलाकार का व्यक्तित्व-'अयं निजः परो वा'-की लघु चेतना से ऊँचा होता है । लौकिक व्यक्तित्व में देश-काल का परिच्छेद रहता है और उसके अनुभव में उपादेयता, हेयता, आकर्षण विकर्षण की निजी भावना रहती है। उसके साथ यह विचार रहता है कि यह अनुभव कूछ काल और बना रहे या क्षण भर भी न रहे । कलाकार का व्यक्तित्व साधारणीकृत है। वह अपने अनुभव को निजत्व या परत्व से परे पाता है। उसमें वह उसका शुद्ध रूप में आस्वाद करता है । वह आनन्दित होता है और अपने आनन्द का परिप्रेषण करता है । कोचे ने भी कलाकार के दो व्यक्तित्व (एक लौकिक और दूसरा आदर्श) माने हैं, देखिए 'काव्य में अभिव्यञ्जनावाद' शीर्षक लेख । .. ____ मैं अपना उदाहरण देकर इस बात को स्पष्ट कर देना चाहता हूँ, पाठक इस आत्मविज्ञापन को क्षमा करें। १६३६ की घोर वर्षा की बाढ़ में जब मेरा घर जल से परिवेष्ठित होगया था और मुझे उसके भावी अस्तित्व में शंका होने लगी थी उस समय मैं हँसने का प्रयास भी नहीं कर सकता था किन्तु थोड़ी देर