पृष्ठ:सुखशर्वरी.djvu/१५

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उपन्यास।

हमलोगों का परिचित सुरेन्द्रकुमार है। .

वद्धा ने बालक को गोदी में लेकर कहा,-"हां! बेटा! पानी बरसने से क्या तुम्हें कुछ कष्ट होता है ?"

"अब पानी खुलेगा" यह कहकर फकीर ने वृद्धा से पूछा कि, "यह बालक किसका है ?"

वद्धा ने हँसते हँमते कहा,-'अब यह मेग बालक है।"

फकीर ने आग्रहपूर्वक पूछा,-"तुम्हारा “अब" शब्द सुनकर मेरा कुतूहल गढ़ गया !"

वद्धा,-"तो सुनो, तुमसे सब बात कहती हूं-यह बालक सचमुच मेरा नहीं हैं, प्रायः पांच चार दिन हुए कि प्रातःकाल के समय इसकी बहिन इसे संग लेकर रोती रोती आश्रय ढंढने के लिये यहाँ आई । मैंने उससे सब बातें पूछौं । सुनने से बड़ा दुःख हुआ। इसीलिये उसके दुःख से दुःखित होकर, यहीं आश्रय दिया । तबसे ये दोनों यहीं रहते और मुझे मां कहते हैं."

पथिक,-"तुमने उससे क्या पूछा था ? "

वद्धा,-"यही कि, 'बेटी तुम क्यों रोती हो' ?”

पथिक,-"उसने क्या कहा ?" .

वुद्धा,-"हां भाई! आते आते मार्ग में उसके पिता का परलोक हुमा । अपना-पराया कोई न रहने से वह रोती थी।"

पथिक,-"हा! बड़े दुःख की बात है ! ये लोग कहांसे आते थे?"

वद्धा,-वहीं से तो-ऐ-हां ठीक याद पड़ा, हरीपुर से ! तुम बेटा हरीपुर जानते हो ?" .

पथिक,-"आंख से तो नहीं देखा है, किन्तु नाना की बूआ की चाची के मुख से सुना था। ये लोग क्यों आते थे ?" ..

वृद्धा,-वहीं के जमीदार के अत्याचार से।"

पथिक,-'कौन अत्याचार ?"

वृद्धा,-"देखो बेटा ! हरीपुर के जमीदार को लड़काबाला नहीं है, वह बलात् इसी बालक को दत्तक लिया चाहता है।"

पथिक,-"या अल्लाह ! हमलोगों का कहां ऐसा भाग है कि अपना बालक न होने से दूसरे का लड़का लेकर सुख उठावें ! हां इसके बाद ?"

वडा -"अनन्तर भयानक अत्याचार से घबड़ाकर रातोंरात