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. युवक;-"समीपवती बन में तंत्र साधन करता होगा! हा! उसने कितनों का सर्वनाश किया होगा।" बालिका,-" आइए न ! इसी समय चुपचाप हम दोनो जने भाग चलें।" युवक,-" सरलहृदये ! मेरे हाथ पैर शृङ्खला से बंधे हैं। मैं हिलने डोलने में संपूर्ण अक्षम हूं। अब तक अंधेरे में बैठा बैठा बड़ी चिन्ता में डूबा था। सहसा तुम्हारा कोमल स्वर कानो में गया और मैंने तब सोचा कि कोई अनाथिनी अबला कदाचित् फिर पापी कापालिक के पाले पड़ी होगी वा पड़ेगी; इसीसे तुम्हें सावधान करने के लिये बड़े कष्ट से खिड़की के पास तक सरक सरक कर आया। हा-" युवक ने दीर्घनिश्वास लिया और बालिका ने साहस से कहा,-" तो मैं आकर आपको बेड़ी और हथकड़ी छुड़ा दूं ?" युवक,-" कोमलहदये ! देखो! आगे न बढ़ो! इस कारागार के द्वार का भारी ताला तोड़ना तुम्हारा काम नहीं है, वह काम दुःसाध्य है। मेरे जीवन के लिये अपना जीवन उलझाव में न फसाँओ। ओः ! जान पड़ता है कि सूर्य अस्त हुए, शीघ्र ही कापालिक आवैगा, भागो! वृथा बातों में समय बीत गया, जल्दी भागो।" यों कहकर युवा ने मन में कहा,-" सब बात ही गुप्त रही ! रे मन ! एकाएक द्वार बन्द कर ! स्मरणशक्ति ! विलुप्त हो! क्या आत्मपरिचय दूं ? इससे क्या उद्धार होगा ? नहीं, तो फिर प्रयोजन नहीं है; कापालिक आता होगा।" _ प्रकाश्य में कहा,-" कापालिक आता होगा, तुम भागो, भागो, जल्दी भागो!" " आपने मुझे जीवनदान दिया, और मैं आपका कुछ उपकार न कर सकी, ईश्वर आपका मंगल करे।" यह कहकर रोती रोती अनाथिनी बिदा हुई और डरती डरती अपनी कुटीर की ओर चली।