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उपन्यास । सब manu aamadanimaasemouminumaanw a o प्रथम,--"चपरासी तो हमलोगों के महाल में कभी नहीं जाता, उस दिन कैसे गया था ? तृतीय,-"ठीक नहीं कह सकता, पर उस दिन किसीसे खबर पाकर हमलोगों की तरह भेस बनाकर और छिपकर उसने सब कुछ सुना था।" प्रथम,-"यह बात मन में नहीं फंसती,वह किससे कहता था?" ततीय,-"कदाचित् अपनी बहू से कहता होगा।" प्रथम,-"ओ! ठीक! जब वह अपनी स्त्री से कहता होगा, तब उसे पकड़ लिया होगा!" ततीय,-"हां भाई, मुगदिल!" प्रथम,-"अच्छा उससे क्या कहा था, शायद तुम्हें मालूम होगा।" ततीय,-'यह तो ठीक नहीं कह सकता।" चतुर्थ,-"ओ: ! मैं कुछ कुछ जानता हूं; कुछ कुछ कमा-सब कुछ जानता हूं।" तीनों,-"जल्दी कहो ! तुम सब जानते हो तो कहो न, सुनें।" चतुर्थ,-"पहले क्या कहूं?" तीनों,-"कहां लड़के को पाया था, यह कहो।" चतुर्थ,-"गंगाकिनारे, एक कुटी में।" तीनों,-"वह पाया कैसे गया?" . चतुर्थ,-"वहां एक बुढ़िया रहती थी, उसीने उनलोगों को टिकाया था। हमारे जमीदार-उन्हें तो तुम जानते ही हौ, कि वे किसीके सगे नहीं है! उन्होंने बुढ़िया तक का सर्वनाश कर डाला।" तीनों,-"क्या कहा ! क्या कहा!" चतुर्थ,-"क्या नहीं जानते ? उसकी कुटी को फंकफांकडाला।" तीनो,-"ठीक! अच्छा क्या बुढ़िया भी जल मरी?" चतुर्थ,-"उस समय वहां कोई नहीं था। तीनों,-"ये सब बातें जाने दो; यह कहीं कि सिपाही को किसने खबर दी ? " चतुर्थ,-"आनन्दपुर के एक जमीदार बलभद्रबाबू के मित्र हैं । उनके घर जाकर उस लड़के की बहिन ने कहा । उन्होंने गोइन्दे से ठीक ठीक हाल सुनकर कि, 'सुरेन्द्र को रामशंकर ही