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श्रीः
उपन्यास'
श्रीमनिम्बार्कसम्प्रदायाचार्य
श्रीकिशोरीलालगोस्वामि-द्वारा
वङ्गभाषा के प्राशय से विशुद्ध आर्ययभाषा
में लिखित ।
"मम्मोधिः स्थलना स्थल जलधितां धूलीलवः शैलतां,
मेरुमृकणमातृणं कुलिशतां बज्रं तृणप्रायनाम्॥
(क्षेमेद्रः)
श्रोछबीलेलालगोस्वामि-द्वारा
श्रीसुदर्शनप्रेस, वृन्दावन से
छपकर प्रकाशित ।
( सर्वाधिकार रक्षित)
दूमरी बार
मूल्य पांच आने।
संवत् १९७३