पृष्ठ:सुखशर्वरी.djvu/३४

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सुखशर्वरी। का परलोकवास हुआ 1" है. बात हुई और अनाथिनी की आंखों से आंसू बहने लगे; सुरेन्द्र भी चुप नहीं था। - मजिष्टे ट,-"ठीक है ठीक है !!! रामशङ्करदास ! तब तुम कैसे सुरेन्द्र को बलात्, अर्थात् बलभद्रदास की सम्मति बिना, नियमपूर्वक दत्तक ले सकोगे? सुरेन्द्र तुम्हारा कोई नहीं होसकता।" सहसा विचारक आर्तनाद करके कुर्सी पर से भूमि में गिर पड़े। क्यों कि एक तीखी छुरी उनके बगल में घुसी थी! सभोंने घबड़ाकर खिंचारक को उठाया। यह किसका काम था? उसी गर्भस्राव पापिष्ट रामशङ्कर के मादेश से मनसाराम के भाई खुराफातअली का! इस समय रामशङ्कर गायब होगए थे । बिचारक अस्पताल पहुंचाए गए और दो कान्सटेबिल रामशङ्कर की खोज के लिये दौडे। धीरे धीरे गोलमाल मिटा। हरिहरप्रसाद अनाथिनी और सुरेन्द्र को संग लेकर गाड़ी पर चढ़े। इसी समय एक बृद्धा गाडी के पास आकर खड़ी हुई। यह वहो वुढ़िया है, जिसने अनाथिनी को आश्रय दिया था। - वृद्धा को देख कर अनाथिनी ने आल्हाद से कहा,-"मां! तुम कहां गई थी ?" वृद्धा,-"एं, बेटी ! मैं तभी से सुरेन्द्र की खोज में मांघ गांध 'मारी मारी फिरती थी। किसीने कुटीर फंक दिया, तुम भी वहां न थी, और क्यो-" - अनाथिनी,-"मैं तो यह रही मां! आओ न,इसी गाड़ी पर! सब कोई एक ही जगह रहेंगी, आओ मां, चलो!" वृद्धा,-"बेटी! तुम्हें देख लिया, अब क्या ।" ३. हरिहरषाबू वृद्धा के उपकार की यात जानते थे, इसलिये . उन्होंने सादर उसे गाड़ी पर चढ़ा लिया। अनाथिनी,-"मां! तुम क्यों कचहरी आई थीं।" - वृद्धा,-"सुना था कि फकीर ने जो लड़का चुराया था, उसका विचार होगा: इसीसे यहां आई थी।" अनन्तर अनेक तरह की बातें करते करते सब कोई गए।